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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५१८

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मुद्राराक्षस

पुरुष---आपको इसमें बड़ा ही हठ है तो कहना पड़ा। इस नगर में जिष्णुदास नामक एक महाजन है।

राक्षस---( आप ही आप ) वह तो चंदनदास का बड़ा मित्र है।

पुरुष---वह हमारा प्यारा मित्र है।

राक्षस---( आप ही आप ) कहता है कि वह हमारा प्यारा मित्र है। इस अति निकट संबंध से इसको चंदनदास का वृत्तांत ज्ञात होगा।

पुरुष---( रोकर ) सो दीन जनो को सब धन देकर वह अब अग्निप्रवेश करने जाता है। यह सुनकर हम यहाँ आए है कि इस दुःख-वार्ता सुनने के पूर्व ही अपने प्राण दे दें।

राक्षस---भद्र! तुम्हारे मित्र के अग्निप्रवेश का कारण क्या है?

कै तेहि रोग असाध्य भयो
कोऊ जाको न औषध नाहिं निदान है?

पुरुष---नहीं आर्य!

राक्षस---कै विष अग्निहु सो बढ़ि कै

नृपकोप महा फँसि त्यागत प्रान है?

पुरुष---राम-राम! चंद्रगुप्त के राज्य में लोगों को प्राणहिंसा का भय कहाँ?

राक्षस----कै कोउ सुंदरी पै जिय देत

लग्यो हिय मॉहि वियोग को बान है?