१ चांडाल---अरे वेणुवेत्रक! पकड़ इस चंदनदास को, घरवाले आप ही रो-पीटकर चले जायँगे।
२ चांडाल---अच्छा वज्रलोमक, मैं पकड़ता हूँ।
चंदन०---भाइयो! तनिक ठहरो, मैं अपने लड़के से तो मिल लूँ। ( लड़के को गले लगाकर और माथा सूँघकर ) बेटा! मरना तो था ही पर एक मित्र के हेतु मरते हैं इससे सोच मत कर।
पुत्र--पिता, क्या हमारे कुल के लोग ऐसा ही करते आए हैं? (पैर पर गिर पड़ता है)।
२ चांडाल---पकड़ रे वज्रलोमक! ( दोनों चंदनदास को पक- ड़ते हैं )
स्त्री---लोगो! बचाओ रे, बचाओ!
( वेग से राक्षस आता है )
राक्षस---डरो मत, डरो मत। सुनो सुनो, घातको! चंदनदास को मत मारना, क्योंकि----
नसत स्वामिकुल जिन लख्यौ निज चख शत्रु-समान।
मित्रदुःख हू मैं धरयौ निलज होइ जिन प्रान॥
तुम सों हारि बिगारि सब कढ़ी न जाकी सांस।
ता राक्षस के कंठ मैं डारहु यह जमफाँस॥
चंदन०---( देखकर और आँखों में आँसू भरकर ) अमात्य, यह क्या करते हो?