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भारतेंदु-नाटकावली

राक्षस---( आप ही आप ) अब क्या करें? ( प्रगट ) हाँ! मैं देख रहा हूँ।

( सेवकों के संग राजा आता है )

राजा---( आप ही आप ) गुरुजी ने बिना युद्ध ही दुर्जय शत्रु का कुल जीत लिया इसमें कोई संदेह नहीं। मैं तो बड़ा लज्जित हो रहा हूँ, क्योंकि----

है बिनु काम लजाय करि नीचो मुख भरि सोक।
सोवत सदा निषंग में मम बानन के थोक॥
सोवहिं धनुष उतारि हम जदपि सकहिं जग जीति।
जा गुरु के जागत सदा नीति-निपुण गत-भीति॥

( चाणक्य के पास जाकर ) आर्य! चन्द्रगुप्त प्रणाम करता है।

चाणक्य---वृषल! अब सब असीस सच्ची हुई, इससे इन पूज्य अमात्य राक्षस को नमस्कार करो, यह तुम्हारे पिता के सब मंत्रियो में मुख्य हैं।

राक्षस---( आप ही आप ) लगाया न इसने संबंध---

राजा---( राक्षस के पास जाकर ) आर्य! चंद्रगुप्त प्रणाम करता है।

राक्षस---( देखकर आप ही आप ) अहा! यही चंद्रगुप्त है!

होनहार जाको उदय बालपने ही जोइ।
राज लह्यौ जिन बाल गज जूथाधिप सम होइ॥