पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५३६

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मुद्राराक्षस

चाणक्य---अमात्य राक्षस! मैं इससे बढ़कर और कुछ भी आपका प्रिय कर सकता हूँ?

राक्षस---इससे बढकर और हमारा क्या प्रिय होगा? पर जो इतने पर भी संतोष न हो तो यह आशीर्वाद सत्य हो----

"वाराहीमात्मयोनेस्तनुमतनुबलामास्थितस्यानुरूपां
यस्य प्राग्दन्तकाटिम्प्रलयपरिगता शिश्रिये भूतधात्री।
म्लेच्छेरुद्वेज्यमाना भुजयुगमधुना पीवरं राजमूर्तेः
स श्रीमद्वन्धुभृत्यश्चिरमवतु महीम्पार्थिवश्चंद्रगुप्तः॥"

( सब जाते हैं )