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भारतदुर्दशा

सत्या० फौ०--महाराज ! धर्म ने सबके पहिले सेवा की।
रचि बहु बिधि के वाक्य पुरानन मॉहि घुसाए।
शैव शाक्त वैष्णव अनेक मत प्रगटि चलाए॥
जाति अनेकन करी नीच अरु ऊँच बनायो।
खान पान संबंध सबन सों बरजि छुड़ायो॥
जन्मपत्र बिधि मिले ब्याह नहिं होन देत अब ।
बालकपन में ब्याहि प्रीति-बल नास कियो सब॥
करि कुलीन के बहुत ब्याह बल बीरज मास्यो।
बिधवा-ब्याह निषेध कियो बिभिचार प्रचास्यो॥
रोकि विलायत-गमन कूपमंडूक बनायो।
औरन को संसर्ग छुड़ाइ प्रचार घटायो॥
बहु देवी देवता भूत प्रेतादि पुजाई।
ईश्वर सोॅ सब बिमुख किए हिंदू घबराई॥


भारतदु० -आहा ! हाहा ! शाबाश ! शाबाश ! हाँ, और भी कुछ धर्म्म ने किया?


सत्या० फौ०--हाँ महाराज।

अपरस सोल्हा छूत रचि, भोजन-प्रीति छुड़ाय।
किए तीन तेरह सबै, चौका चौका लाय॥


भारतदु०--और भी कुछ?


सत्या० फौ--हाँ,


भा० ना०--३०