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भारतेंदु-नाटकावली

रचिकै मत वेदांत को, सबको ब्रह्म बनाय।
हिंदुन पुरुषोत्तम कियो, तोरि हाथ अरु पाय॥
महाराज, वेदांत ने बड़ा ही उपकार किया। सब हिंदू
ब्रह्म हो गए। किसी को इतिकर्त्तव्यता बाकी हो न
रही। ज्ञानी बनकर ईश्वर से विमुख हुए, रुक्ष हुए,
अभिमानी हुए और इसी से स्नेहशून्य हो गए। जब
स्नेह ही नहीं तब देशोद्धार का प्रयत्न कहाँ? बस, जय
शंकर की।


भारतदु०--अच्छा, और किसने-किसने क्या किया?


सत्या० फौ०--महाराज, फिर संतोष ने भी बड़ा काम किया। राजा-प्रजा सबको अपना चेला बना लिया। अब हिंदुओं को खाने मात्र से काम, देश से कुछ काम नहीं। राज न रहा, पेनशन ही सही। रोजगार न रहा, सूद ही सही। वह भी नहीं, तो घर ही का सही, 'संतोषं परमं सुखं', रोटी ही को सराह-सराह के खाते हैं। उद्यम की ओर देखते ही नहीं। निरुद्यमता ने भी संतोष को बड़ी सहायता दी। इन दोनो को बहादुरी का मेडल जरूर मिले। व्यापार को इन्हीं ने मार गिराया।


भारतदु०--और किसने क्या किया?


सत्या० फौ०--फिर महाराज जी धन की सेना बवी थी उसको जीतने को भी मैंने बड़े बाँके वीर भेजे। अपव्यय,