सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४६७
भारतदुर्दशा


अदालत, फैशन और सिफारिश इन चारों ने सारी दुशमन की फौज तितिर बितिर कर दी। अपव्यय ने खूब लूट मचाई। अदालत ने भी अच्छे हाथ साफ किए। फैशन ने तो बिल और टोटल के इतने गोले मारे कि अंटाधार कर दिया और सिफारिश ने भी खूब ही छकाया। पूरब से पच्छिम और पच्छिम से पूरब तक पीछा करके खूब भगाया। तुहफे, घूस और चंदे के ऐसे बम के गोले चलाए कि "बम बोल गई बाबा की चारों दिसा" धूम निकल पड़ी। मोटा भाई बना-बनाकर मूँड़ लिया। एक तो खुद ही यह सब पँड़िया के ताऊ, उस पर चुटकी बजी, खुशामद हुई, डर दिखाया गया, बराबरी का झगड़ा उठा, धाँय धाँय गिनी गई*[], वर्णमाला कंठ कराई†[], बस हाथी के खाए कैथ हो गए। धन की सेना ऐसी भागी कि कब्रो में भी न बची, समुद्र के पार ही शरण मिली।


भारतदु०--और भला कुछ लोग छिपाकर भी दुश्मनो की ओर भेजे थे?


सत्या० फौ०--हाँ, सुनिए। फूट, डाह, लोभ, भय, उपेक्षा, स्वार्थपरता, पक्षपात, हठ, शोक, अश्रुमार्जन और निर्बलता इन एक दरजन दूती और दूतों को शत्रुओं की फौज में


  1. *सलामी मिली।
  2. †सी० आई ०ई० आदि उपाधियाँ मिली।