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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५९२

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भारतेंदु-नाटकावली

भारत के भुज-बल जग रच्छित।
भारत विद्या लहि जग सिच्छित॥
भारत तेज जगत बिस्तारा।
भारत भय कंपत संसारा॥
जाके तनिकहिं भौंह हिलाए।
थर-थर कंपत नृप डरपाए॥
जाके जय की उज्जल गाथा।
गावत सब महि मंगल साथा॥
भारत किरिन जगत उँजियारा।
भारत जीव जिअत संसारा॥
भारत वेद कथा इतिहासा।
भारत वेद प्रथा परकासा॥
फिनिक मिसिर सीरीय युनाना।
भे पंडित लहि भारत-दाना॥
रह्यौ रुधिर जब आरज-सीसा।
ज्वलित अनल समान अवनीसा॥
साहस बल इन सम कोउ नाहीं।
तबै रह्यौ महिमंडल माहीं॥
कहा करी तकसीर तिहारी।
रे बिधि रुष्ट याहि की बारी॥
सबै सुखी जग के नर-नारी।
रे बिधना भारत हि दुखारी॥