पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५९१

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छठा अंक

स्थान--गंभीर वन का मध्यभाग

(भारत एक वृक्ष के नीचे अचेत पड़ा है)

(भारतभाग्य का प्रवेश)


भारतभाग्य--(गाता हुआ-राग चैती गौरी)

जागो जागो रे भाई!
सोअत निसि बैस गँवाई। जागो जागो रे भाई॥
निसि की कौन कहै दिन बीत्यो काल राति चलि आई।
देखि परत नहिं हित-अनहित कछु परे बैरि-बस जाई॥
निज उद्धार पंथ नहिं सूझत सीस धुनत पछिताई।
अबहूँ चेति, पकरि राखो किन जो कछु बची बड़ाई॥
फिर पछिताए कछु नहिं ह्वैहै रहि जैहौ मुँह बाई।
जागो जागो रे भाई॥

(भारत को जगाता है और भारत जब नहीं जागता तब अनेक यत्न से फिर जगाता है, अंत में हारकर उदास होकर)

हाय ! भारत को आज क्या हो गया है? क्या निस्संदेह परमेश्वर इससे ऐसा ही रूठा है? हाय क्या अब भारत के फिर वे दिन न आवेगे? हाय यह वही भारत है जो किसी समय सारी पृथ्वी का शिरोमणि गिना जाता था?