पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६०७

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दूसरा दृश्य
स्थान––युद्ध के डेरे खड़े हैं
(एक शामियाने के नीचे अमीर अबदुश्शरीफ़ खाँ सूर बैठा
है और मुसाहिब लोग इर्द-गिर्द बैठे हैं)

शरीफ––(एक मुसाहिब से) अबदुस्समद! खूब होशियारी से रहना। यहाँ के राजपूत बड़े काफिर हैं। इन कमबख़्तों से खुदा बचाए। (दूसरे मुसाहिब से) मलिक सज्जाद! तुम शब के पहरों का इंतिजाम अपने जिम्मे रखो, ऐसा न हो कि सूरजदेव शबखून मारे। (काजी से) काजी साहब! मैं आपसे क्या बयान करूँ, वल्लाही सूरजदेव एक ही बदबला है। इहातए पंजाब में ऐसा बहादुर दूसरा नहीं।

काजी––बेशक हुजूर! सुना गया है कि वह हमेशा खेमों ही में रहता है। आसमान शामियाना और जमीन ही उसे फर्श है। हजारों राजपूत उसे हर वक्त घेरे रहते हैं।

शरीफ––वल्लाह तुमने सच कहा, अजब बदकिरदार से पाला पड़ा है, जान तंग है। किसी तरह यह कमबख़्त हाथ आता तो और राजपूत खुद बखुद पस्त हो जाते।