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भारतेंदु-नाटकावली


एक मुसाहिब––खुदावंद! हाथ आना दूर रहा, उसके खौफ से अपने खेमे में रहकर भी खाना-सोना हराम हो रहा है।

शरीफ––कभी उस बेईमान से सामने लड़कर फतह नहीं मिलनी है। मैंने तो अब जी में ठान ली है कि मौका पाकर एक शब उसको सोते हुए गिरफ़्तार कर लाना। और अगर खुदा को इस्लाम की रोशनी का जल्वा हिंदोस्तान ज़ुल्मतनिशान में दिखलाना मंजूर है तो बेशक मेरी मुराद बर आएगी।

काजी––इन्शा अल्लाह तआला।

शरीफ––कसम है कलामे शरीफ की, मेरी ख़ुराक आगे से इस तफक्कुर में आधी हो गई है। (सब लोगों से) देखो, अब मैं सोने जाता हूँ, तुम सब लोग होशियार रहना।

(गजल)
(उठकर सबकी तरफ देखकर)

इस राजपूत से रहो हुशियार खबरदार।
गफलत न जरा भी हो खबरदार खबरदार॥
ईमाँ की कसम दुश्मने जानी है हमारा।
काफिर है य पंजाब का सरदार खबरदार॥
अजदर है भभूका है जहन्नुम है बला है।
बिजली है गजब इसकी है तलवार खबरदार॥