पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६२१

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सातवाँ दृश्य
स्थान––कैदखाना
(महाराज सूर्य्यदेव एक लोहे के पिंजड़े में मूर्छित पड़े हैं।
एक देवता सामने खड़ा होकर गाता है)

देवता––

(लावनी)

सब भाँति दैव प्रतिकूल होइ एहि नासा।
अब तजहु बीर-बर भारत की सब आसा॥
अब सुख-सूरज को उदय नहीं इत ह्वैहै।
सो दिन फिर इत अब सपनेहूँ नहिं ऐहै॥
स्वाधीनपनो बल धीरज सबहि नसैहै।
मंगलमय भारत भुव मसान ह्वै जैहै॥
दुख ही दुख करिहै चारहु और प्रकासा।
अब तजहु बीर-बर भारत की सब आसा॥
इत कलह विरोध सबन के हिय घर करिहै।
मूरखता को तम चारहु ओर पसरिहै॥
वीरता एकता ममता दूर सिधरिहै।
तजि उद्यम सब ही दासवृत्ति अनुसरिहै॥
ह्वै जैहैं चारहु बरन शूद्र बनि दासा।
अब तजहु बीर-बर भारत की सब आसा॥