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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६२३

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नीलदेवी

बरसाया? अरे अभी तो यहाँ खड़ा गा रहा था अभी कहाँ चला गया? निस्संदेह यह कोई देवता था। नहीं तो इस कठिन पहरे में कौन आ सकता है। ऐसा सुंदर रूप और ऐसा मधुर सुर और किसका हो सकता है। क्या कहता था? 'अब तजहु बीर-बर भारत की सब आसा'। ऐं! यह देववाक्य क्या सचमुच सिद्ध होगा? क्या अब भारत का स्वाधीनता-सूर्य फिर न उदय होगा? क्या हम क्षत्रिय राजकुमारों को भी अब दासवृत्ति करनी पड़ेगी? हाय! क्या मरते-मरते भी हमको यह वज्र शब्द सुनना पड़ा? और क्या कहा, 'सुख सों सहिहैं सिर यवनपादुका त्रासा।' हाय! क्या अब यहाँ यही दिन आवेंगे? क्या भारतजननी अब एक भी वीर पुत्र न प्रसव करेगी? क्या दैव को अब इस उत्तम भूमि की यही नीच गति करनी है? हा! मैं यह सुनकर क्यों नहीं मरा कि आर्यकुल की जय हुई और यवन सब भारतवर्ष से निकाल दिए गए। हाय!

(हाय-हाय करता और रोता हुआ मूर्छित हो जाता है)
(जवनिका पतन)