गुरु की भक्ति फुरो मंत्र ईश्वरोवाच डाढ़ी जगावे तो मियाँ साँच।
(आँख से इगित करता है)
मियाँ––(फिर डाढ़ी लगाकर) लाहौल वला कूवत क्या बेखबर पागल है। इसके घर के लोग इसके लौटने के मुन्तजिर हैं यह यहीं पड़ा है।
पागल––पड़ा घड़ा सड़ा––घूम घाम जड़ा––एक एक बात––जात सात धात––नास नास नास––घास छास फास।
मियाँ––क्या सचमुच––दरहकीकत––यह बड़ा भारी पागल है। पागल––सचमुच नास––राजा अकास––ढाल बे ढाल मियाँ मतवाल।
(आँख से दूर जाने को इंगित करता है। मियाँ आगे बढ़ते हैं––यह पीछे धूल फेकता दौड़ता है)
मार मार मार। बरसा की धार। लेना जाने न पावे। मियाँ का खच्चर। (दोनों एकांत में जाकर खड़े होते हैं)
मियाँ––(चारों ओर देखकर) अरे वसंत! क्या सचमुच सर्वनाश हो गया?
पागल––पंडितजी! कल सबेरी रात ही महाराज ने प्राण त्याग किए। (रोता है)
मियाँ––हाय! महाराज, हम लोगों को आप किसके भरोसे छोड़ गए! अब हमको इन नीचों का दासत्व भोगना