पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६३६

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दसवाँ दृश्य
स्थान––अमीर की मजलिस
(अमीर गद्दी पर बैठा है। दो-चार सेवक खड़े हैं। दो-चार
मुसाहिब बैठे हैं। सामने शराब के पियाले, सुराही,
पानदान, इतरदान रखा है। दो गवैए सामने
गा रहे हैं। अमीर नशे में झूमता है)

गवैए––

आज यह फत्ह का दरबार मुबारक होए।
मुल्क यह तुझको शहरयार मुबारक होए॥
शुक्र सद शुक्र कि पकड़ा गया वह दुश्मने-दीन।
फत्ह अब हमको हरेक बार मुबारक होए॥
हमको दिन-रात मुबारक हो फत्ह ऐशोउरूज।
काफिरों को सदा फिटकार मुबारक होए॥
फत्हे पंजाब से सब हिंद की उम्मीद हुई।
मोमिनो नेक य आसार मुबारक होए॥
हिंदू गुमराह हों बेजर हो बनें अपने गुलाम।
हमको ऐशो तरबोतार मुबारक होए॥

अमीर––आमीं आमीं। वाह-वाह वल्लाही खूब गाया। कोई है? इन लोगो को एक-एक जोड़ा दुशाला इनआम दो। (मद्यपान)