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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६४०

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नीलदेवी

आज ही इसको काबू में लाना जरूर है। (प्रगट) वल्लाह, तुम्हारे गाने ने मुझको बेअख्तियार कर दिया है। एक चीज और गाओ इसी धुन की। (मद्यपान)

गायिका––जो हुकुम। (गाती है)

हाँ गरवा लगावै गिरधारी हो, देखो सखी लाज सरम सब जग की,
छोड़ि चट निपट निलज मुख चूमै बारी बारी।
अति मदमातो हरि कछु न गिनत छैल बरजि रही मैं होइ होइ बलिहारी।
अब कहाँ जाऊँ कहा करूँ लाज की मैं मारी!

अमीर––(मद्यपान करके उन्मत्त की भाँति) वाह-वाह! क्या कहना है। (गिलास हाथ में उठाकर) एक गिलास तो अब तुमको जरूर ही पीना होगा। लो तुमको मेरी कसम, वल्लाह मेरे सिर की कसम जो न पी जाओ।

गायिका––हुजूर, मैंने आज तक शराब नहीं पी है। मैं जो पीऊँगी तो बिल्कुल बेहोश हो जाऊँगी।

अमीर––कुछ परवाह नहीं, पीओ।

गायिका––(हाथ जोड़कर) हुजूर, एक दिन के वास्ते शराब पीकर मैं क्यों अपना ईमान छोड़ूँ?

अमीर––नहीं-नहीं, तुम आज से हमारी नौकर हुई, जो तुम चाहोगी तुमको मिलेगा। अच्छा, हमारे पास आओ। हम तुमको अपने हाथ से शराब पिलावेंगे।