पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६५८

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अंधेर-नगरी

राजा––अच्छा, चुन्नीलाल को निकालो, भिश्ती को पकड़ो (चूनेवाला निकाला जाता है, भिश्ती लाया जाता है) क्यों बे भिश्ती! गंगा-जमुना की किश्ती! इतना पानी क्यो दिया कि इसकी बकरी गिर पड़ी और दीवार दब गई?

भिश्ती––महाराज! गुलाम का कोई कसूर नहीं, कस्साई-मसक इतनी बड़ी बना दी कि उसमें पानी जादे आ गया।

राजा––अच्छा, कस्साई को लाआ, भिश्ती निकालो। (लोग भिश्ती को निकालते हैं कस्साई को लाते हैं) क्यो बे कस्साई, मशक ऐसी क्यो बनाई कि दीवार लगाई बकरी दबाई?

कस्साई––महाराज! गँड़ेरिया ने टके पर ऐसी बड़ी भेड़ मेरे हाथ बेची कि उसकी मशक बड़ी बन गई।

राजा––अच्छा कस्साई को निकालो, डँगेरिए को लाओ। (कस्साई निकाला जाता है, गड़ेरिया आता है) क्यों बे ऊख पौंड़े के गँड़ेरिये, ऐसी बड़ी भेड़ क्यों बेचा कि बकरी मर गई?

गो गॅडेरिया––महाराज! उधर से कोतवाल साहब की सवारी ॐ आई, सो उसके देखने में मैंने छोटी बड़ी भेड़ का खयाल नहीं किया, मेरा कुछ कसूर नहीं।

.ना०-३६