मार पीट भी कर बैठते हैं। काशी में गैबी नाम से दो स्थान प्रसिद्ध हैं, एक बड़ी गैबी और दूसरी छोटी गैबी कहलाती है। यहाँ पहिले सैकड़ों मनुष्य संध्या को इकट्ठे होते थे, अब भी लोग जा रहते हैं। भारतेन्दुजी ने अपने समय के जमावड़ों का आँखों देखा दृश्य लिखा है। इसके पात्र दलाल, गंगापुत्र, भंडेरिया, दूकानदार, गुंडा, यात्री और मुसाहिब काशी के विशिष्ट निवासी हैं। काशी तीर्थ स्थान है, इससे यात्री तथा उनको पुजाने वाले यहाँ की विशेषता हैं। इन्हीं लोगों का वृत्त इन्हीं के भाषा में सरलता पूर्वक दिखलाया गया है। प्रत्येक पात्र अपने समाज का पूरा नमूना है। यात्री के मुख से काशी का एक प्रकार का विवरण कहला कर उसके बुरे पक्ष का अच्छा चित्रण किया गया है और लुच्चे बदमाश किस प्रकार अकारण दूसरों से लड़ाई मोल लेते हैं, यह भी दिखलाया गया है। भारत के इतिहास से भी पता चलता है कि यहाँ के वीरो की उद्दंडता इतनी बढ़ी थी कि उनके सामने मूछ ऐंठने से तलवार चल पड़ती थी, यहाँ तक कि वे हवा से उनकी मूछ हिला देने के कारण लड़ पड़ते थे, इसीलिए अब यहाँ के वर्तमान वीरों ने मूछ ही का सफाया कर दिया, न रहेगी न लड़ाई मोल लेनी पड़ेगी।
तीसरे गर्भांक में मुगलसराय स्टेशन का दृश्य दिखलाया गया है। ज्ञात होता है कि उस समय तक काशी तथा सिकरौल स्टेशन नहीं बने थे। मुगलसराय स्टेशन सन् १८६२ ई० में खुला था और उसकी शाखा गंगा जी के उस पार तक आई थी। सन् १८८७ ई० में पुल बनने पर इधर के स्टेशन बने। स्टेशन ही पर यात्रियो को पंडे मिल जाते हैं और काशी की प्रशंसाकर