भी अग्रवाल-समाज कवित्त बनाना 'भाटन का काम है' समझता है। भारतेन्दु जी के विषय में लोग क्या क्या अनर्गल बातें कहते थे उन सबका बड़ी सौम्यता के साथ वर्णन किया गया है। प्रातः काल कुछ रात्रि रहते ही जाते समय रईसी प्रथानुसार मशाल साथ ले जाने का अर्थ छक्कू जी के मुख से खूब कहलाया है। इस तरह व्यंग्य की बौछार करना तुच्छ हृदय वालों के लिए साधारण बात है। बँटवारा तथा वसीयत के बाद मल्ले जी के मुख से यह कहलाना कि 'छोटे चित्त के बड़े खोटे है', इनके हृदय की उच्चता का द्योतक है। क्योंकि इससे कड़े शब्द का प्रयोग करना उनके लिए कठिन ही था। कुछ के मुख से छप्पन भोग के सुख बतलाए गए हैं तथा धनदास-वनितादास की बातचीत में गुरु तथा शिष्य-शिष्याओं के चरित्र दिखलाए गए हैं। इसके अनंतर स्वयं नाटककार रामचंद्र के रूप में रंगमंच पर आते हैं और 'एक तजवीज के साथ' 'अंधरी मजिस्टरों' तथा उनकी कचहरी का हाल बतलाते हैं। बस इसी समय दर्शन खुलता है और दृश्य पटाक्षेप के कारण बंद हो जाता है।
बनारस में 'बहरी तरफ' जाने की प्रथा बहुत पुरानी है। नगर से बाहर हटकर बाग-बगीचे, प्रसिद्ध कुएँ, गंगा के उस पार आदि स्थानो में चार छ मित्रों की टोलियाँ बँधकर जाती हैं और भाँग ठंढई छानकर, दिशाफरागत से निपटकर और धोती अँगौछे पर साफा देते हुए स्नान आदि से निवृत्त हो लौटती हैं। समय विशेषकर सायंकाल रहता है। अब भी यह प्रथा जारी है। ऐसे स्थानों पर एकत्र हुए लोगों में बातचीत बोली-ठोली होती है, यहाँ तक कि कभी कभी साधारण लोग