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भारतेंदु-नाटकावली


हाय ! हमारे माता-पिता बुढापे से सामर्थ्यहीन तो थे ही ऊपर से दैव ने उन्हें अंधा भी बनाया। हाय ! अभागे सत्यवान से भी कभी माता-पिता की सेवा न बन पड़ी! कभी उनके वात्सल्य-पूर्ण प्रेमामृत-वचन ने मेरे कान न शीतल किए। और न ऐसा होना है। जनमते ही तो तपस्या करनी पड़ी। धन्य विधाता ! दरिद्र को धनवान् और धनवान् को दरिद्र करना तो तुम्हे एक खेल है। किंतु दरिद्र बना के फिर क्यों कर देते हो ! दरिद्र ही सही, पर मन को तो शांति दो। भला दो घड़ी भी वृद्ध माता-पिता की सेवा करने पावें। (चिंता)

(सावित्री को घेरे हुए गाते-गाते मधुकरी, सुरबाला और लवंगी का आना और फूल बीनना)

(गौरी)

सखीजन--


भौंरा रे बौरान्यो लखि बौर।
लुबध्यौ उतहि फिरत मडरान्यौ जात कहूँ नहिं और--

भौंरा रे बौरान्यो।


(चैती गौरी)


फूलन लागे राम बन नवल गुलबवा।
फूलन लागे राम--महुआ फले आम बौराने डारहि डार

भँवरवा झूलन लागे राम।