पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५६१
सतीप्रताप

शरीर में पौरुष हई नहीं। एक आँख थी सो भी गई। तीर्थभ्रमण और देवदर्शन से भी रहित हुए।


प० ऋषि--आपके नेत्रो के इतने निर्बल हो जाने का क्या कारण है? अभी कुछ आपकी अवस्था अति वृद्ध नहीं हुई है।


धुमत्सेन--वही कारण जो हमने कहा था। (उदास होकर) पुत्रशोक से बढ़कर जगत में कोई शोक नहीं है। गणक लोगो ने यह कहकर कि तुम्हारा पुत्र अल्पायु है, मेरा चित्त और भी तोड़ रखा है। इसी से न मैं ऐसा घर, ऐसी लक्ष्मी सी बहू पाकर भी अभी विवाह-संबंध नहीं स्थिर करता।


दू० ऋषि--अहा! तभी महाराज अश्वपति और उनकी रानी इस संबंध से इतने उदास है। केवल कन्या के अनुरोध से संबंध करने कहते हैं।

(हरिनाम गान करते हुए नारदजी का आगमन)


नारद--(नाचते और वीणा बजाते हुए)

(चाल नामकीर्तन महाराष्ट्री कटाव)

जय केशव करुणा-कंदा। जय नारायण गोविंद॥

जय गोपीपति राधा-नायक। कृष्ण कमल-लोचन सुखदायक॥
माधव सुरपति रावण-हंता। सीतापति जदुपति श्रीकंता॥
बुद्ध नृसिंह परशुधर बावन। मच्छ-कच्छ-बपुधर गज-पावन॥

कल्कि बराह मुकुंदा। जय केशव करुणा कंदा॥