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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६९५

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भारतेंदु-नाटकावली

अभी लकड़ी चुन कर ले जाना है। प्यारी! तुम यहीं ठहरो मैं अभी काष्ट लेकर आता हूँ।

सावित्री---नहीं प्राणनाथ! तुम्हें जाने देने को जी नहीं चाहता। आज न जाने क्यों जी उदास हो रहा है, न जाने कैसा कैसा जी कर रहा है, आप मत जाइए।

सत्यवान---स्त्रियों का स्वभाव अत्यंत कोमल और प्रेममय होता है, इसी से तुम्हारा जी ऐसा हो रहा है और कुछ बात नहीं है। अब हम जाते हैं।

सावित्री---( दहिनी आँख का फड़कना दिखाकर ) नहीं नहीं आप मत जाइये, देखिये मेरी दहिनी आँख भी फड़कती है, आज न जाने क्या होनहार है। मैं आप को न जाने दूँगी।

सत्यवान---यह स्त्रियों के स्वाभाविक दुर्बलता का कारण है और कुछ भी नहीं है। होता वही है जो उसकी इच्छा होती है। अब तुम अाग्रह मत करो, हमें जाने दो, देर हो रही है, पिता दिक़ हो रहे होंगे। ( जाता है और सावित्री बेर बेर मना करती है और व्याकुलता नाट्य करती है )।

सावित्री---( अत्यंत उदास होकर ) आज जी ऐसा क्यों हो रहा है? अाज ऐसा जान पड़ता है कि कोई भारी अनर्थ होगा। (चौंक कर ) हैं! क्या आज ही वह भयानक दिन है जो मुनि ने बतलाया था? हाय? मैंने बुरा किया जा