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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/७००

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सतीप्रताप

{{block centerहम जिसको लेंगे उससे ज़रा भी न डरैगे।
जो कुछ कि जी में आवैगा हम वोही करेंगे।।}}

यमदूत हैं हम भूत हैं-

एक दूत---अरे तुम सब नीचा हो जाया करोगे या कुछ काम भी करोगे?

सब---( घबड़ा कर ) हाँ हाँ, चलो भाई सत्यवान के प्राण को अभी प्रभु के पास ले चलना है। ( सब आगे बढ़ते हैं )

एक दूत---( डर कर ) हैं यहाँ तो आग सी जल रही है, किसकी सामर्थ है जो इस में कूदैगा। ( सब आश्चर्य और भय से उसी ओर देखते हैं )

दूसरा---सच तो, हमने भी असंख्य जीवों के प्राण लिए, यही करते जन्म बीता, पर ऐसा चमत्कार कभी नहीं देखा था। अब महाराज से चल कर क्या कहैंगे?

तीसरा---छि---तुम सब निरे डरपोक हो, हम लोग रात दिन के नरकाग्नि में रहनेवाले लोग हमारा इस आग से क्या होना है देखो हम अभी लाते हैं। ( सत्यवान के पास तक जाता है और बड़े ज़ोर से चिल्ला कर "अरे बाप रे मरे रे" कह कर अचेत हो गिरता है )

सब---( मारे डर के कॉपते हुए ) भाइयो जान बचाना हो तो जल्दी यहाँ से भागो। जो दशा देखते हैं वही वहाँ निवेदन कर देंगे।