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सतीप्रताप

देवांगनागण गाकर अपने का धन्य मानैंगी और तुम्हारी पुण्यकथा संसार को पवित्र करैगी।

(लवंगी, मधुकरी और सुरबाला का प्रवेश)

सखीत्रय—वाह, सखी वाह! तुममें इतने गुण भरे हैं यह हम लोगों को तनिक भी विदित न था। धन्य तुम्हारा सतीत्व।

नारद—(सत्यवान से) पुत्र! तुम्हारा धन्य भाग्य है जो तुमने ऐसी सती स्त्री पाई। (सावित्री का हाथ सत्यवान के हाथ में देते हैं) लो आज फिर मैं तुम्हें इस अमूल्य रत्न को सौंपता हूँ, इसे यत्न से रखना।

(तीनों सखी और अप्सरागण सावित्री-सत्यवान को बीच में करके नाचती और गाती हैं। रंगशाला में खूब प्रकाश हो जाता है)

जय जय सावित्री महरानी।
सती-सिरोमनि रूपरासि करुनामय सब गुनखानी॥
प्रेममयी निज पति के पद में छाया सी लपटानी।
इनके जस की सुभग पताका तीन लोक फहरानी॥
अचल प्रताप सतीत्व धरम को थाप्यो जग सुखदानी।
सतीमंडली भूषण ह्वै है इनकी प्रेम कहानी ॥१॥

(आकाश से पुष्पवृष्टि होती है और जवनिका गिरती है)