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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/७१५

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इस भाग में आए हुए संस्कृत आदि

अंशों के अर्थ

पृष्ठ ५---विष्णु भगवान के लीला-वराह का वह दाँत-रूपी दंड तुम लोगों की रक्षा करे, जिस पर सुमेर पर्वत रूपी कलशयुक्त पृथ्वी छाते की तरह शोभायमान है।

पृष्ठ ५६---तुम्हारा शुभ हो, भला हो, दीर्घायु हो, गाय-घोड़ा-हाथी-धन-अन्न की वृद्धि हो, संपत्ति बढ़े, मंगल हो, शत्रु का नाश हो और संतान की बढ़ती के साथ कृष्ण-भक्ति बनी रहे।

पृ० ५७---ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि देवगण तुम्हारा अभिकिंचन करें अर्थात् सुरक्षित रखें। गंधर्व, किन्नर तथा नागगण तुम्हारी सर्वदा रक्षा करें। पितरगण, गुह्यक ( कुबेर के कोष के रक्षक ), यक्ष ( कुबेर के सिपाही ), देवियों, भूतगण, सातो माताएँ अर्थात् शक्तियाँ सभी तुम्हारा मार्जन तथा तुम्हारी सर्वदा रक्षा करें। शुभ हो और कुशल हो। महालक्ष्मी तुम पर प्रसन्न हों। हे सती, तुम पति-पुत्र के साथ सौ वर्ष तक जीवित रहो।

( जिस प्रकार जल फेंका गया है उसी प्रकार ) तुम्हारा जो पाप हो और अमंगल हो वह दूर चला जाय।