पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/८२

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८---मुद्राराक्षस

क--नाटककार

मुद्राराक्षस के प्रणेता का नाम विशाखदत्त या विशाखदेव, पिता का नाम महाराज पृथु और पितामह का नाम सामंत बटेश्वरदत्त था, इतना नाटक की प्रस्तावना से पता चलता है। इनकी एक अन्य कृति देवीचन्द्रगुप्तम् का पता हाल में लगा है, जिसके अब तक ६ उद्धरण मिले है। पूरी प्रति अभी तक अप्राप्य है। जर्मन-देशीय प्रोफ़ेसर हिलब्रैड ने भारत में भ्रमण कर मुद्राराक्षस की सभी प्राप्य प्रतियो का मिलान किया है, जिनमें कुछ प्रतियो में विशाखदत्त के पिता का नाम भास्करदत्त भी लिखा मिला है।

प्रोफ़ेसर विल्सन ने महाराज पृथु को चौहानवंशीय राय पिथौरा या पृथ्वीराज साबित करने का प्रयत्न किया था पर वे स्वयं उनकी पदवियों तथा उनके पिताओं के नामों की विभिन्नता का किसी प्रकार मंडन न कर सके। उनका यह कथन कि 'सामंत बटेश्वर को चद ने भाषा में लिखने के कारण संक्षेपतः सोमेश्वर लिखा होगा' युक्तियुक्त नहीं है क्योकि पृथ्वीराज-विजय नामक संस्कृत महाकाव्य में भी 'जयति सोमेश्वर-नन्दनस्य' लिखा है।

साथ ही पृथु तथा पृथ्वी भी स्पष्टतया विभिन्न हैं और पृथ्वीराज के किसी विशाखदत्त नामधारी पुत्र के होने का पता नहीं है। प्रोफेसर हिलब्रैड की खोज से पृथु का पाठान्तर