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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/८९

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चले जाने से लेकर उसके फिर से चंद्रगुप्त का मंत्रित्व ग्रहण करने तक लगभग एक वर्ष का समय व्यतीत हुआ था। चतुर्थ अंक पंक्ति ४५ में मलयकेतु का कथन है कि 'अाज पिता को मरे दस महीने हुए' और पर्वतक के मारे जाने के बाद ही राक्षस मलयकेतु के पास गया था। नाटक का आरंभ उस दिन से होता है जब जीवसिद्धि पर्वतक पर विषकन्या के प्रयोग करने के दंड में राज्य से निर्वासित किया जाता है और यह दंड पर्वतक के घात के दो ही चार दिन के अनंतर दिया गया होगा। जिस दिन मलयकेतु ने पूर्वोक्त बात कही थी, उस दिन मार्गशीर्ष की पूर्णिमा थी। इससे दस मास पिछले गिनने से फाल्गुन की पूर्णिमा अाती है, जिसके दो एक दिन इधर या उधर पर्वतक की मृत्यु हुई होगी।

तीसरे अंक का दृश्य चातुर्मास के अनंतर आश्विन शुक्ल पूर्णिमा का है। इसका वर्णन उसी अंक में है।

चौथे अंक का दृश्य मार्गशीर्ष की पूर्णिमा का है।

पाँच अंक का भी पूर्वोक्त तिथि के एक मास बाद का होना संभव है, क्योंकि मलयकेतु की सेना करभक की कथित दूरी को ( अंक ४ पृ० ३६४ ) तैकर कुसुमपुर के पास पहुँच गई थी। ( अंक ५ पृ० ३८२ )।

अंतिम दो अंको की घटना का समय लेने पर नाटक की कथावस्तु का समय एक वर्ष के भीतर ही होता है।

ङ---पात्रों का विवेचना

इस नाटक के प्रधान पात्र चाणक्य उपनाम कौटिल्य है और