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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/९०

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इनके प्रतिद्वंद्वी नंदवंश के मंत्री राक्षस हैं। नाटक के नायक मौर्य वंश के प्रथम सम्राट चंद्रगुप्त तथा प्रतिनायक मलयकेतु हैं। अन्य पात्रों में चंदनदास, शकटदास और भागुरायण उल्लेखनीय हैं। चाणक्य और चंद्रगुप्त ऐतिहासिक पुरुष है। राक्षस भी ऐतिहासिक पुरुष होंगे क्योकि ऐसे प्रधान पात्र को कल्पित मानना उचित नहीं। यदि ये कोरे कवि कल्पना मात्र होते तो क्या कवि राक्षस से अच्छे नाम की कल्पना नहीं कर सकता था। मलयकेतु भी ऐतिहासिक हो सकता है। अन्य पात्र कल्पित है।

इस नाटक में प्रथम पात्र-युगल के जीवन का केवल वही अंश दिखलाया गया है, जो राज्य के षड्यंत्रों में व्यतीत होता था। दोनों ही में स्वार्थ का चिन्ह भी नहीं देख पड़ता। चाणक्य ने इतने परिश्रम से, केवल अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिये चंद्रगुप्त को राज्य का अधिकारी बनाया और अंत में उस राज्य को दृढ़ कर मत्रित्व का पद तक न ग्रहण किया वरन् स्वस्थापित राज्य की भलाई के लिए उसे अपने प्रतिद्वंद्वी राक्षस को सौंप दिया। राक्षस भी निःस्वार्थ भाव से ही अपने गत स्वामिवंश का बदला लेने को प्राणपण से लगा था। निःस्वार्थता ही तक दोनों समान हैं, पर इससे परे वे कहाँ तक एक दूसरे से भिन्न है, यह स्पष्टतया दिखला दिया गया है। चाणक्य दूरदर्शी, दृढ़प्रतिज्ञ और कुटिल नीति में पारंगत था। उन्हे अपने ऊपर पूर्ण विश्वास था और उनकी मेधा तथा स्मरण शक्ति बलवती थी। इन्हीं गुणो के कारण उन्होने शत्रु के षड्यंत्रो को निष्फल करते हुए उनसे स्वयं लाभ उठाया और निज उद्देशसिद्धि के लिये उन्हीं का प्रयोग ठीक समय पर कर वे सफल प्रयत्न हुए। इनमें