पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/९७

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वह समय कुछ और था नहीं तो अब एक अनुवाद से सहायता लेकर दूसरा प्रकाशित कर पैसा कमाना ही कितने लेखकों और प्रकाशकों का काम रह गया है। तुर्रा यह कि सहायक अनुवाद का कहीं उल्लेख भी न रहेगा।

छ---निर्माण-काल

मुद्राराक्षस के निर्माण-काल के निश्चित करने का पहिले पहिल प्रो० विलसन ने प्रयास किया था। इन्होंने नाटक के म्लेच्छ से मुसलमान का तात्पर्य लिया है और गजनवी तथा गोरी का समय निश्चित किया है । पुनः पाँचवें अंक के आरंभ के श्लोक को लेकर कहा है कि इस प्रकार की अलंकृत शैली हिंदू अपने पड़ोसियो से ग्रहण कर रहे थे। इस प्रकार पूर्वोक्त तर्कों के आधार पर मुद्राराक्षस का निर्माण काल ग्यारहवीं या बारहवीं शताब्दि निश्चित किया गया। पूर्वोक्त निश्चय के विरुद्ध पहिले पहिल बंबई हाईकोर्ट के जज पं० काशीनाथ तैलंग ने लेखनी उठाई और विद्वत्तापूर्ण विवेचना कर दिखलाया कि उसकी भित्ति निर्मूल है। प्रो० विलसन जैन क्षपणक जीवसिद्धि के नाटक में पात्र होने को नवीनता मानने का एक कारण बतलाते हैं क्योंकि वे जैनों के समय को बहुत आधुनिक मानते हैं। आधुनिक खोज से उनकी यह युक्ति भी निर्भ्रान्त नहीं रह गई। प्रो० विलसन की खंडनात्मक आलोचना करने पर विद्वद्वर पं० तैलंग ने अन्य कारणों से समय निकालने का भी प्रयत्न किया है। दशरूप में मुद्राराक्षस का तीन बार उल्लेख है। सरस्वती- कंठाभरण में मुद्राराक्षस के नाम का उल्लेख नहीं है, पर एक