पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/९८

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विशेष अंश दोनों में समान रूप से है। दूसरा मुद्राराक्षस के एक प्राकृत श्लोक का संस्कृत अनुवाद है, जिनकी दूसरी पंक्तियों में कुछ भिन्नता है। दशरूपक के लेखक धनंजय परमार-वंशीय राजा मुंज के समय में हुए, जिनकी सरस्वती-कंठाभरण कृति है। मुंज की मृत्यु सम्वत् १०५० और १०५४ के बीच में हुई, इससे यह निश्चित हो गया कि मुद्राराक्षस नाटक सम्वत् १०४४ वि० के पूर्व की कृति है।

मिस्टर तैलंग के बतलाए पूर्वोक्त दोनों ग्रन्थों के सिवा हितोपदेश में एक श्लोक तथा शागंधर-पद्धति में मुद्राराक्षस ( अंक ७ श्लोक ३ ) के एक श्लोक के भावार्थ की नकल मुक्तापीड़ कृत कह कर उद्धृत है। यह मुक्तापीड़ या ललितादित्य काश्मीर के राजा थे और इनका काल सन् ७२६-७५३ ई० है। विशाखदत्त कृत दो अनुष्टुभ श्लोक वल्लभ देव के सुभाषित में संग्रहीत हैं, जिनका काल पंद्रहवीं शताब्दि का पूर्वार्द्ध है। इधर हाल में विशाखदत्त कृत एक नाटक देवीचन्द्र गुप्तम् का पता चला है जिसके उद्धरण उक्त नाटककार के नाम सहित रामचन्द्र-गुणचन्द्र कृत नाट्यदर्पण तथा भोज कृत श्रृंगार प्रकाश में दिए गए हैं। मि० काशीप्रसाद जायसवाल ने भरतवाक्य के 'म्लेच्छैरुद्विज्यमाना, अधुना और चन्द्रगुप्तः' शब्दों पर विचार करते हुए निश्चित किया था कि नाटककार ने अपने समय के राजा गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय का उल्लेख किया है, 'जो हूणों को परास्त करेंगे'। मिस्टर वी० जे अंतानी ने इन विचारो का खंडन किया है। यह सब ऐतिहासिक तर्क वितर्क केवल 'अधुना' शब्द पर उठाया गया था, पर राक्षस मंत्री के कहने का तात्पर्य है कि