पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०६०

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सगमपध पाँच, गृह षड्ज, गान समय बसंत ऋतु दिन का प्रथम भाग, ध्यान स्वर्ण वर्ण हिंडोले पर भूलता' हुआ । हनुमत् मत से रागिनी रामकली, देखाखी, ललिता, विलावली और पटमंजरो, पुत्र चद्रविब. मंडल, शुभ, आनंद, विनोद, गौर प्रधान और विभास । भरत मत से रागिनी रामकली, मालवती, आशावरी, देवारी और गुनकली, पुत्र बसंत, मालव, मोरु, कुशल, लंकादहन, बखार बंध, नागधुन और धवल, पुत्रवधू लीलावती, कैरवी, चैती, पारावती, पूरबी, तिरवरी, देवगिरि और सुरमती । दीपक हनुमत मत से दूसरा और भरत मतं से चतुर्थराग, सूर्य के नेत्र से उत्पत्त, जाति संपूर्ण, स्वर सरिगमपधनि सात, गृह षड्ज, गाने का समय ग्रीष्म का मध्यान्ह, हाथी पर सवार वीरवेष । हनुमत मत से रागिनी इसकी देसी, कामोद, केदार, कान्हरा और कर्नाटी, पुत्र कुंतल, कमल, कलिंग, चंपक, कुसुभ ; राम, लहिल और हिम्माल । श्री राग दोनों मतों से पाँचवाँ राग, जाति संपूर्ण, सात स्वर सरिगमपधनि, गृह षइज, समय हेमंत की संध्या, ध्यान सुंदर सिंहासनारूढ़ पुरुष । हनुमत् मत से रागिनी मालश्री, मारवा, धनाश्री, बसंत और आशावरी, पुत्र सिंधु, मालव, गौड़, गुनसागर, कुंभ, गंभीर संकर और विहाग, भरत मत से रागिनी सिंघवी, काफी, देसी, विचित्रा और सोरठी, पुत्र श्री रमण, कोलाहल, सामंत, संकर, राकेश्वर, खट, बड़हंस और देशकार (मतांतर से हम्मीर और कल्याण भी), पुत्र भार्या कुंभा, सोहनी, शारदा, ध्याया, शशिरेखा, सरस्वती, क्षमा और बैया । मेघ दोनों मत से छठा राग, ध्यान श्यामरंग, शोणित-खड्ग-हस्त, जाति उड़व, पंचस्वर यथा ध नि स रि ग, गृह धैवत, गान-समय वर्षा की रात्रि, रागिनी टंक, मदपारी, गूजरी, भूपाली और देशी, पुत्र जालंधर, सार, नटनारायन, शंकराभरण, कल्याण, जधर, गांधार और सहान, भरत मत से पाँच रागिनी मलारी, मुलतानी, देशी, रतिवल्लभा और कावेरी, पुत्र यथा कलायर, वागेश्वरी, सहाना, पूरिया, तिलक, कान्हरा, स्तंभ, शंकराभरण, पुत्रबधू, यथा कर्नाटी, कादवी, ककल्लनाट, पहाड़ी. माँझ, परज, नटभंजी, शुद्ध नट । यह छ रागों का वर्णन हुआ । अब और बातों का भी वर्णन करते हैं। मूछना वह वस्तु है जो खरज से ऋषम तक पहुंचने में जहाँ स्वर बदलेगा वहाँ लगे । यह तो हनुमत् मत से है । भरत मत से स्वरों के गान में गले का काँपना मूच्छर्ना है । और मतों से ग्राम का सातवे भाग का नाम मूच्छना है । षड्ज ग्राम की मूर्च्छना, यथा ललिता, मध्यमा, चित्रा, रोहिनी, मतंगजा, सौवीरा । मध्यम ग्राम की मूर्च्छना, यथा पंचमी, मत्सरी, मधु, मध्या, शुद्धा, अन्ता, कलावती और तीव्र । गांधार ग्राम की मूच्छना ७ यथा रौद्री, ब्राहमी, वैष्णवी, स्वेदरी, सुरा, नादावती और विशाला । इन्हीं मूर्च्छनाओं का जहाँ शेष में विस्तार होता है उन को तान कहते हैं । वे ४९ है । इन्हीं में स्वरों के मेल से कूटतान होती है । इन मूर्छनाओं के जनक तीन ग्राम है -षड्ज, मध्यम गंधार । इन तीन ग्रामों में पूर्व दो पृथ्वी पर और अंत का स्वर्ग में गाया जाता श्रुति वह वस्तु है जो स्वरों का आरंभ करती हैं और सूक्ष्मरूप से स्वरों में व्याप्त रहती हैं । ये ४ षड्ज में, ३ ऋषम में, २ गांधार में, ४ मध्यम में, ४ पंचम में, ३ घेवत में, २ निषाद में, यही २२ श्रुति है । कोमल, अति कोमल, समान, तीव्र, तीव्रतर से रीति रागों में यथा रीति सुर बरते जाते हैं और जहाँ सूक्ष्म और स्फुट स्वर लगते हैं वहाँ कालकी कहलाती है । लोगों का चित्त रंजन करते हैं इससे इन की राग संज्ञा है और जहाँ राग रागनियों के ध्यान रूप क्रिया आदि लिखे हैं, उनका आशय यह है कि वैसे अवसर पर वे राग योग्य होते हैं । जैसे भैरवी का ध्यान है कि स्वेत वस्त्रा सवेरे शिव पूजन करती है, तो जानो कि ऐसे ही सवेरे शिव-पूजन के अवसर में इसका गाना उत्तम है । हमारे प्रबंध के पड़नेवालों को एक ही रागिनी का नाम बारबार कई रागों में देखकर आश्चर्य होगा । इसमें हमारा दोष नहीं, यह संगीत शास्त्र के प्रचार की न्यूनता से ग्रंथों में गड़बड़ हो गई है । कोई अन्वेषण करने वाला हुआ नहीं, जो ग्रंथकारों को मिला वा उन्होंने सुना लिख दिया । यह तो जब अपने गले वा हाथ से करता हो और ग्रंथों को भी जानता हो वह एक बेर निर्णय कर के लिखै तब यह सब ठीक हो जाय । ताल । समय का सूक्ष्म से सूक्ष्म और बड़ा से बड़ा समान विभाग ताल है । विचार करके देखो तो छंदों की प्रवृत्ति भी ताल ही से होगी । एक गिरह की लकीर खींचो तो इस बिंदु से लकीर के उस बिंदु तक उँगली ले जाने में जो काल लगेगा वह ताल ठहरा और उसी गिरह भर के वाल बराबर मोटे जितने सुक्ष्म भाग है उनके प्रति भाग पर जो काल लगा वह भी ताल है । पर ऐसे सूक्ष्म और ऐसे गुरु जिन के बरताव में काल का स्मरण न रहे वह कुछ काम नहीं आते । सिद्धांत यह कि गाने के अनुकूल समय का विभाग ही ताल है । नृत्य. गान वा भारतेन्दु समग्र २०१६