पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१११८

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कविता लिखनी शुरू की और लोगों से लिखवाया भी। इस सन्दर्म में सितम्बर १८१को 'मारत मित्र' के सम्पादक को लिखा गया पत्र द्रष्टव्य है। "प्रचलित साधुभाषा में कुष्ठ कविता मेवी है । देखिएगा कि इसमें क्या कसर है। और किस उपाय के अवलम्बन करने से इस भाषा में काव्य सुन्दर बन सकता है। इस विषय में सर्वसाधारण की अनुमति जात होने पर लागे से पैसा परिश्रम किया जायगा । तीन भिन्न-भिन्न छन्दों में यह अनुभव करने ही के लिये कि किस छंद मेंस भाषाका काव्य अच्छा होगा, कविता लिखी है। मेवाड़ यात्रा के समय इन्होंने अपने भाई को मल्लिका की चिन्ता करते हुए यह पत्र लिखा था। पत्र में तारीख नहीं है। इसका बहुत सा अंश पेन्सिल से लिखे जाने की वजह से अस्पष्ट है। -सं. प्रिय, "विदेश से हम लौट कर न आयें तो इस बात का जो हम यहां लिखते है ध्यान रखना । ध्यान क्या अपने पर फर्ज समझना । किन्तु हम जल्दी जीते जागते फिरेंगे । कोई चिन्ता नहीं है । सिर्फ संयोग के पश हो कर लिखा है । यदि ऐसा हो तो दो चार बातों का आवश्य ध्यान रखना । यह तुम जानते हो कि तुम्हारी भाभी की हमको कुछ चिन्ता नहीं क्योंकि तुम्हारे ऐसा देवर जिनका वर्तमान है उसको और क्या चाहिये । दोषात की हमको चिन्ता है । प्रथम कचें, दूसरी महिलाका की रक्षा । चोड़ी सी डिगरी जो बच गई है उसको चुका देना । और जीवन भर दीन हीन मल्लिका की जिसको हमने धर्मपूर्वक अपनाया है रक्षा करनी । कृष्ण में ऊची शिक्षा संस्कृत, अंग्रेजी और बंगला की हो । जो ग्रन्थ हमारे या बाबू जी के थे छपे रह जाय घे छपें । इस पत्र को हमने कलेजा फाड़ फाड़ कर चार दिन में अर्थात् अछनेरा से शुरू करके भिलाडे में खतम किया है । इसपर हंसना मत दु:खी होना, क्योंकि अभी तो अणु मात्र भी मरने की सम्भावना नहीं है। शारीरिक कुशल है तनिक मी चिन्ता -हरिश्चन्द्र जून १८८२ ई० में भोपाल की बेगमसाहिया ने अपनी कुछ कवितायें भारतेन्दु जीके पास भेजी थीं उनको इन्होंने निम्नलिखित पत्र के साथ "भारतमित्र" के संपादक के पास मेज कर प्रकाशित कराया था। सं. करना।" "प्रिय सम्पादक ! भूपाल की रईस और स्वामिनी वर्तमान श्रीमती बेगम साहिवा उर्दूभाषा में बहुत अच्छी कषि है । इन की गजल में "चमनिस्तानपुर बहार" और "गुलबारेपुर बल्हार" इत्यादि में प्रकाशित कर चुका हूं । संपति उन के बनाये माषा में कई एक भवन मेरे पास आये है । मैं उन में से दो आपके पास प्रकाश करने को भेजता है । इस को देख कर क्या साधारण आर्य धर्माभिमानी ललनागण लज्जित न होगी कि एक मुसलमान और अत्यन्त राव मारण्यन स्त्री ने ऐसी सुन्दर कविता की है । क्या वह भी दिन देखने में आवेगा कि हमारी गृहिलक्ष्मी गण भी कुछ बनायेगी ? इन का काव्य में "रूपरतन" नाम है । नाम मी बड़े ठाट बाट का रक्खा है। -हरिश्चन्द्र भारतेन्दु ने अपनी शुरूजाती कवितायें प्रायः ब्रज भाषा में लिखी हैं। कुछ उर्दू भाषा में भी है। बाद में खड़ी बोली आन्दोलन को साधुमाषा कह उन्होंने इसमें भी स०

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