पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१११७

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एक निर्लज्ज की पगड़ी पर धील बैठो तो बोला कि बरताने तक पहुंची ।। चुटकिले। एक ने एक से कहा कि एकदाशी का व्रत करके द्वादशी को पारण करना उसने ब्रत तो नहीं किया पर पारण किया जब उसने पूछा कि कहो ब्रत किया था तब वह बोला कि भाई ब्रत तो नहीं हो सका पर तुम्हारे डर के मारे पारण कर लिया कि जो बने सोई सही ।। ॥इति॥ पत्र साहित्य भारतेंदु बाबू हरिश्चन्द्र के पत्र सन् १८६६ में कुचेसर यात्रा के दौरान भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र द्वारा अपने भतीजे कृष्णचंद्र जी को लिखा गया पत्र । -सं० चिरंजीव, श्रीकृष्ण, प्यारेकृष्ण, राजाकृष्ण, बाबूकृष्ण, आंखों की पुतली । तुम्हारा जी कैसा है ? सर्दी मत खाना, रसोई रोज खाते रहना । तुम को छोड़कर हमारा अखतियार होता तो क्षण भर भी बाहर नहीं आते । क्या करें लाचारी से झक मारते हैं । कृष्ण, तुम्हारा अभी कोमल स्वच्छचित है । तुम हमारे चित्त को ध्यान से जान सकते किन्तु बुद्धि और वाणी अभी स्फुरित नहीं है । इससे तुम और किसी पर उसे प्रगट नहीं कर सकते हो । परमेश्वर के अनुग्रह से उसको उस स्वाभाविक कृपा से जो आजतक इस वंश पर है, तुम चिरंजीव हो. तुम्हारे में उत्तम गुण हो । हम इस समय बुलन्दशहर में हैं । आज कुचेसर जायेंगे।" -हरिश्चंद्र सन् १८७१ की हरिद्वार यात्रा के बाद इन्होंने हरिद्वार के एक पण्डे को पत्र लिखा- सम्वत बसु युग ग्रहससो, पूनो शह अषाढ़ । रबिबासर हरिद्वार में, लिख्यो पच अति गाढ़ ।। मित्र मिलन मधुबन गमन के हित कियो पयान । मधे श्रीगंगाहार में, हरखि कियो अस्नान ।। संग कन्हैयालाल जू और किशन इकदास । रैन युगल बसि के कियो, न्हान चन्द्र के ग्रास ।। हिजबर नागर मल्ल पुनि, श्रीगोबिन्दा राम । पोखरिया उपनाम है, तीरथहिज गुन घाम ।। दून को पंडा मानि के पूजन बहुविधि कीन्ह । पाठ कियो शुकसहित, यथाशक्ति धन दीन्ह ।। यातें जो आवै दूते, मेरे कुल के माहि । सो इनही को पूजिहें, और हिजन को नाहि ।। विमल वैश्यकुल कुमुद ससि, सेवत श्रीनन्दनंद । निजकर कमलन सौ लिख्यो, यह कबिबर हरिश्चंद्र ।। पत्र साहित्य २०७३