पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११४९

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20 विविध सन् १८७३ में इन्होने काशी में ही पैनीरीड़िग क्लष स्थापित किया इसके लेखकगण अपने लेख पढ़ते थे। जिसे बाद में हरिश्चंद्र मैगजीन" में छापा जाता था। भारतेन्दु ने उसकी नियमावली जो बनाई थी वह यह है सं. (१) पढ़नेवालों को अपने विषय का नाम तीन दिन पहिले लेखाध्यक्ष के पास भेज देना होगा। (२) अपशब्द और अश्लील और विभत्स शब्द कोई न प्रयोग करे, और ईश्वर के विषय में कोई निंदा का शब्द वा किसी सभ्य के विषय में मर्मवाक्य कोई न बोले । () बिना पास के कोई न आने पावेगा और पास सब सम्भावित लोग लेखाध्यक्ष से मंगवा लेंगे। (४) जो पास पाने का अधिकारी नहीं है उसको पांच रुपये देने से सीजन पास मिलेगा। जहाँ तक हो सकेंगा पढ़ना शीघ्र ही आरम्भ और शीघ्र ही समाप्त होगा । (६) कोई देखने वाला कोलाहल करके विघ्न करेगा तो निकाल दिया जायेगा। (७) कोई रंग मन्दिर में न आये, यदि जायेगा तो निकाल दिया जायेगा । - -हरिश्चंद्र सन् १८८३ में ब्रिटेन के किसी उपनिवेश के गर्वनर पोपोन्सी ने"इल्वर्टबिल' के सन्दर्भ में भारतेन्दु बाबू को एक पत्र लिखा" लार्ड रिपन की सुनीत सर्मथन में क्या आप अपनी लेखनी नहीं उठायेगा"? भारतेन्दु बाबू ने इस विषय पर कोई गलतफहमी न पैदा हो इसलिए हिन्दी और अंग्रेजी के समाचार पत्रों में यह विज्ञप्ति प्रकाशित की। सं० 'एक हाल की सभा में कर्नल मलेसन साहिब ने मेरा नाम लिया है कि मैं "जुरिजडिकशनविल" का विरोधी हूँ। कर्नल साहिब के ऐसा कहने से सम्भव है कि मेरे देशीयजन मेरे विषय में कुछ और ही अनुमान करें। यदि मैं कर्नल साहिब की बातों का खंडन न करूं तो मैं देश का अशुभचिन्तक समझा जाऊँगा यथार्थ बात यह है कि लेखन में मेरे एक मित्र फ्रेडरिक पिनकाट साहिब है । मैंने उनके पास दो तीन पत्र भेजा था जिसमें इलवर्टविल के सम्बन्ध में मी लिखा था । मेरे लेखों का सारांश यह था कि "जुरिजडिकशनविल' के सम्बन्ध में हिन्दू और अंगरेज में बड़ा हलचल और झगड़ा उठ खड़ा हुआ यदि बिल पास हो तो हिन्दुओं का बहुत लाभ न होगा और जो न पास हो तो अंगरेजों को भी बहुत लाभ न होगा । प्रत्येक अंगरेज तथा हिन्दू को जो देश की भलाई की मनोकामना रखते हैं यही इच्छा करनी उचित है कि यह विरोध और यह जातीय झगड़ा निवृत्त हो जाय । अवश्य मैंने अपने पत्र में बंगालियों का नाम नहीं लिया था। कविता बर्बिनी सभा द्वारा कवियों को दिया जाने वाला प्रशंसा- पत्र। विविध ११०३