पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११५०

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प्रशंसापत्र यह प्रशंसापत्र को कवि सभा की ओर से इस हेतु दिया जाता है कि आज की समस्या को (जो पूर्ण करने के हेतु दी गई थी) इन्हों ने उत्तमता से पूर्ण किया और दत्त विषय की कविता इन ने प्रशंसा के योग्य की है इस हेतु मिली की काव्य वर्दिनी सभा के सभापति, सभाभूषण, सभासद और लेखाध्यक्षों ने अत्यन्त प्रसन्नता पूर्वक आदर से इन को यह पत्र दिया है। मि. संवत् १९२७ ह. B. सभापति लेखाध्यक्ष धर्म के प्रसार और ईश्वर प्रेम के लिए भारतेन्दु वायू ने सन् १८७३ में" तदीय समाज' की स्थापना की। इस संस्था द्वारा मादक द्रव्यों, मांस आदि पर प्रतिबन्ध के लिए सबसे पहले आवाज उठायी गयी। संस्था के नियम भारतेन्तु ने ही बनाये थे। -सं० समाज को मि० प्रावण शुक्ल १३ बुधवार सं० १९३० को जारम्भ किया था। इसके नियम ये ७. (क १. श्री तदीय समाज इसका नाम होगा । २ यह प्रति बुधवार को होगा। ३. कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भी होगा। ४. प्रत्येक वैष्णव इस समाज में आ सकते है परन्तु जिनका शुद्ध प्रेम होगा ये इसमें रहेंगे। ५. कोई आस्तिक इस माज में आ सकता है पर जब एक सभासद उसे विषय में मली मांति कहेगा । जो कुछ द्रव्य समाज में एकत्रित होगा धन्यवाद पूर्वक स्वीकार किया जायगा । समाज क्या करेगा- समाज जारम्म किसी प्रेमी के द्वारा ईश्वर के गुणानुवाद से होगा । गुरुओं के नामों का संकीर्तन होगा। (ग) एक वक्ता कोई सभासद गत समाज के चुने हुए विषय पर कहेगा । एक अध्याय श्री गीताजी का और श्रीमद्भागवत दशम का एक अध्याय, पढ़े जायगे। (ड) समाज के समाप्ति में नाम संकीर्तन होगा और दूसरे समाज के हेतु विषय नियत किया जायगा और अंत में प्रसाद बंटेगा भी क्रम सामाजिको को आज्ञा से बढ़ सकते हैं। । इस समाज से जगत और मनुष्यों से कुछ सम्बन्ध नहीं तथापि वहाँ तक हो सकेगा शुद्ध प्रेम की पदि करेगा और हिंसा के नाश करने में प्रवृत होगा । इसके ये महाशय सभासद चे, १ श्री हरिश्चन्द्र २ राजा भरत पूर (राप श्री कृष्णदेव शरण सिंह -अच्छे कवि और विज्ञान थे) ३ श्री गोकुलचन्द्र ४ दामोदर शास्त्री (संस्कृत हिन्दी के प्रसिद्ध कवि) ५ तिलषण कर (१तारकाश्रम (अच्छे विरक्त थे) ७ प्रयागदत्त (सच्चररित्र ब्राहमण थे) ८ शुकदेव मिश्र (श्री गोपाललाल जी के मन्दिर के कीर्तनिया) १ हरीराम (प्रसिद्ध वीणकार बाजपेई जी) १० व्यास गणेशराम जी (श्री मदभागवत के अच्छे वक्ता चे, बड़े उत्साही घे, भागवत सभा, कान्यकुब्ब पाठशाला के संस्थापक थे) ११ कन्हैयालाल जी (वाचू गोपालचन्द्र जी के सभासद) १२ शाह कुन्दनलाल जी (श्री वृन्दाबन के प्रसिद्ध कपि, ROKA भारतेन्दु समग्र १२०० $