पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११५२

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१४. AKA कभी कोई बाद जिससे रहस्य उद्घाटन होता हो अनधिकारी के सामने न कहंगे । और न कभी ऐसा वाद अबलम्बन करेंगे जिस्से आस्तिकता की हानि हो। चिन्ह की भांति तुलसी की माला और कोई पीत वस्त्र धारण करेंगे। यदि ऊपर लिखे नियमों को हम भंग करेंगे तो जो अपराध बन पड़ेगा हम समाज के सामने कहेंगे और उसकी क्षमा चाहेंगे और उसकी धूणा करेंगे। १५. १६. मिती भाद्रपद शुक्ल ११ संवत ११३० हरिश्चन्द्र साक्षी पं. वेचन राम तिवारी पं.अहमदत चिन्तामणि दामोदर शर्मा शुकदेव नारायण राय माणिक्यलाल जोशी शर्मा हस्ताक्षर तदीय नामांकित अनन्य वीर वैष्णव यद्यपि मैंने लिख दिया है तथापि इसकी लाज तुम्ही को है (निज कल्पित अवर में) तदसीय समाज बाबू हरिश्चंद्र ने वैष्णव समाज के लिए एक परीक्षा करने की भी सोची थी। लेकिन यह चल न पायी। उसकी प्रकाशित नियमावली यह है। -सं. श्रीमद्वैष्णवग्रंथों में परीक्षा वैष्णवों के समाज ने निम्न लिखित पुस्तकों में तीन श्रेणियों में परीक्षा नियत की है और १५०) प्रथम के हेतु और १५०) द्वितीय के हेतु और ५०) तृतीय के हेतु पारितोषिक नियत है जिन लोगों को परीक्षा देनी हो काशी में श्रीहरिश्चन्द्र गोकुलचन्द्र को लिखें नियत परीक्षा तो स. १९३२ के वैशाख शुद्ध ३ से होगी पर बीच में जब जो परीक्षा देना चाहे दे सकता है। श्रेणी श्रीनिम्बार्क श्रीरामानुज श्रीमध्य श्रीविष्णुस्वामि प्रविष्ट वेदान्त रत्न मंजूषा, वेदान्त रत्नमाला, सुरगुम मंचरी यतीन्द्रमत दीपिका शतदूषणी वेदान्त रल- माला, तत्य प्रकाशिका षोडश ग्रन्थ षोडशबाद, संप्रदाय प्रदीप अति सूत्र वेदान्त कौस्तुम और प्रभा, षोड़शी रहस्य, तात्पर्य निर्णय, भाष्य सुधा, न्यायामृत विद्धन्मडल स्वर्ण प्रवीण सूत्र, निवन्ध प्रस्थान त्रय आवर्ण मंग भारतेन्दु समग्न ११०६