पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२६२

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2047 सर्व लक्षननि-संपन्न श्रीकृष्ण को ज्ञान प्रभु देत गुरु रूप धारी । सदा सानद तुंदिल पश्चदल-सरिस नयन जुग जगत संतापहारी ।६ कृपा करि दृष्टि की वृष्टि बर्षित किए दासिका दास पति परम प्यारे । रोग दृग करन मुरछित भक्ति देषिगन भक्तजन चरन सेवित दुलारे । भक्तजन सुख-सेव्य अति दुराराध्य दुरलभ कुंज पद अग्र तेजधारी । वाक्य रस-करन पूरन सकल जनन मन भागवत-पय-सिधु-मथनकारी ।८ सार ताको जनि रास बनितान के भाव सों सकल पूरित सुभेसा । होत सनमुख देत प्रेम श्रीकृष्ण को अविमुक्ति देत लखि बहत देसा ।९ रास लीकैक तात्पर्य्य-मम रूप मुनि देत करि कृपा बहु कथा ताकी । त्यागि सब एक अनुभव करहु बिरह को यहै उपदेस बानी सु जाकी ।१० भक्ति आचार उपदेस नित करत पुनि कर्म मारग प्रवर्तन सु कीनो । सदा यागादि मैं भक्ति मारग एक करहु साधनहि उपदेस दीनो ।११ पूर्ण आनंद-माय सदा पूरन काम । वाक्य-प्रति निखिल जग विबुध भूपा । कृष्ण के सहस शुभ नाम निज मुख कहे भक्ति पर एक जाको सरूपा ।१२ भक्ति आचार उपदेस हित शास्त्र के वाक्य नाना निरुपन सु कीने । भक्त-जन सदा घेरे रहत जिनन निज प्रेम-हित प्रान-प्रन त्यागि दीने ।१३ निज दास अर्थ-साधन अनेकन किए जदपि प्रभु आप सब शक्तिकारी । एक भुव लोक प्रचलित करन भक्तिपथ कियो निज वंश पितु रूप धारी ।१४ निज विमल वंस में परम माहात्म्य प्रभु धर्यो सब जगत संदेहहारी । पतिब्रता पति परलौकिकैहिक दान करन अधिकार जन को बिचारी ।१५ गूढ मति हृदय निज अन्य अनमक्त कों सकल आशय आपु कहत प्यारे । जग उपासन आदि मारगादीन मैं मुग्ध जन-मोह के हरनवारे ।१६ सकल मारगन सों भक्ति मारग वीच अति विलक्षण सु अनुभवहि माने । पृथक कहि शरण को मार्ग उपदेस करि कृष्ण के हृदय की बात जाने ।१७ प्रति क्षण गुप्त लीला नव निकुंज को मरि रही चित्त मैं सदा जाके । सोइ कथा स्मरण करि चित्त आक्षिप्तवत भूलि गइ सकल सुधि आये ताके ।१८ ब्रज जिय व्रजवास अतिहि प्रिय पुष्टि लीला-करन सदा एकांत-चारी । भक्तजन सकल इच्छा सुपूरन-करन अतिहि अज्ञात लीला बिहारी ।१९ अतिहि मोहन निरासक्त जग भक्त मात्रासक्त्त पतित पावन कहाई । जस-गान करत जे भक्त तिनके हृदय कमल मैं वास जाको सदाई ।२० स्वच्छ पीयूष लहरी सदृस निज जसनि तुच्छ करि अन्य रस दिये बहाई । पर रूप कृष्ण-लीला अमृत रस अखिल जन सीचि प्रेम में दिए मिजाई ।२१ सदा उत्साह गिरिराज के वास में सोई लीला प्रेम-पूर गाता । यज्ञ हवि हरत पुनि यज्ञ आपुहि करत अति बिसद चारह फल के दाता १२२ सुम प्रतिज्ञा सत्य जगत उदार की प्रकृति सों दूर बहु नीति-ज्ञाता । कीर्ति वर्दन करी सूत्र को भाष्य करि कृष्ण इक तत्व के शान-दाता ।२३ तूल मायावाद दहन-हित अग्नि वपु ब्रह्म को वाद जग प्रगट कीनो । निखिल प्राकृत रहित गुनन भूषित सदा मंद मुसुकानि मन चोरि लीनो ।२४ तीनहूँ लोक भूषन भूमि भाग्य वर सहब सुंदर रूप बेद-सारं । सदा सब भक्त पार्थित चरन कमल रज धन रूप नौमि लक्ष्मण-कुमार ।२५ waar भारतेन्दु समग्र २२२