पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२६९

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'उदव, सात्यकि, नारद, गरुड़, सुदर्शनचारी । अथ प्राचीन भक्त स्मरण रुक्मिनि, सत्या, भद्रा, शैव्या, नाग्नजिती पुनि । जांबवती, लक्ष्मणा, मित्रबिंदा, रोहिणि गुनि । सुमिरौं शुक नारद शिव अज नर व्यास परासर । बालमीक पृथु अम्बरीष प्रहलाद पुन्य-कर । इन आदि नारि सोलह सहस इनके सुत परिवार सह। पुण्डरीक भीष्मक शौनक पाण्डव गंगा-सुत । प्रद्युम्न पार्थ अनिरुद्ध जुत सुमिरौं दुख-नासन दुसह ।४ हनूमान सुग्रीव विभीषन अंगद कपि जुत । अथ लीला स्मरण शांडिल्य गर्ग मैत्रेय जय बिजय कुमुद कुमुदाक्ष भजि । देवकि के घर जनमि नंद घर में चलि आए। हरि-भक्त सुमिरि मन प्रात उठि बकी तृनावृत अघ बक बछ बृष केसि नसाए । नित प्रथमहि गृह-काज तजि ।९ बाल-रूप कालीमर्दन सुरपति मद-मंजन । गोचारक रस रास-रमन गोपी-मन-रंजन । अथ गुरु-परंपरा स्मरण कंसादि नास-कर सकल भुव-भार-उतारन रूप धरि। सुमिरौं श्री गोपीपति पद-पंकज असनारे । सुमिरौं लीलामय नंद-सुत श्री शिव नारद ब्यास बहुरि शुकदेव पियारे । अटल नित्य ब्रज-बास करि ।५ विष्णु स्वामि पूनि अरु-अवली सत सप्त सुमिरि मन । अथ अवतार स्मरण बिल्वमंगल पुनि सुमिरौं थापन निज मत धरि तन । मत्स कच्छ बारह प्रगट नरहरि बपु बावन । श्री वल्लभ बिट्ठल भय-हरन पुष्टि-प्रकाशक जग बिमल। परशुराम श्री राम लक्ष्मण भरत शत्रुहन । सुमिरौं नित प्रेम-परंपरा पुनि बलराम सुबुद्ध कल्कि हरि दस बपु धारी । गुरुजन की निज भक्ति-बल ।१० चौबिस रूप अनेक कोटि लीला विस्तारी । अथ गुरु-स्मरण अवतारी हरि श्रीकृष्ण बपु शुद्ध सच्चिदानंदघन । नित सुभिरत मंगल होत अति श्री बल्लम सुमिरौं अरु श्री गोपीनाथ पियारे । श्री विठ्ठल पुरुषोत्तम जग-हित नर-बपु धारे । सुख पावत सब भक्त्त-जन ।६ श्री गिरिधर गोविन्द राय पुनि बालकृष्ण कहु । अथ समुदाय स्मरण गोकुलपति रघुपति जदुपति घनश्याम-भक्ति लहु । गंगा गीता शंख कौमोदकि पड़ा। लक्ष्मी-रुक्मिणि-पद्यावती-पद-रज नित सिर धारिए। नंदक सारंग बान पास पद्मा-सुख सद्या । श्री बल्लभ कुल को ध्यान मन कबहूँ नाहि बिसारिए ।११ बंशी माला भूग वेत्र पीताम्बरादि कल । अथ वैष्णन-स्मरण पुण्यधाम हरि वासर बैष्णव धर्म बिगत मल । हरि-प्रेम दास्य विश्वास दृढ़ तिलक छाप माला सुमिरि । श्री निम्बारक रामानुज पुनि मध्व जय ध्वज । नित्यानंद अद्वैत कृष्ण चैतन्य व्यास भज । तुलसी हरि-प्रिय-समुदाय भजि निः नित सुमिरौं उठि प्रात हरि ७ हित हरिबंश गदाधर श्री हरिदास मनोहर । सूरदास परमानंद कुंभन कृष्णदास वर । अथ श्री भागवत स्मरण गोविन्द चतुर्भुजदास पुनि नंददास अरु छीत कल । निखिल निगम को सार दिव्य बहु गुण-गण-भूषित । नित सुमिरि प्रात गन उठत ही आदि अनादि पुरान सरस सब भाँति अदूषित । हरि भक्तन के पद-कमल ।१२ शुक मुरू भाखित मुक्त कथा परमारथ सोधक । दोहा प्रहम-ज्ञानमय सत्यवती-नंदन मन-बोधक। दस लक्षमन लक्षित पाप-हर द्वादस शाखा सहित पर । द्वादस द्वादस अर्द्ध पद प्रात पढ़े जो कोय । सुमिरौं अष्टादस सहस श्री ग्रंथ भागवत मोह-हर |८| हरि-पद-बल 'हरिचंद नित मंगल ताको होय ॥१३ चक 6) th DEXAL छोटे प्रबंध तथा मुक्तक रचनायें २२७