पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३५९

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१ दूत- जो आज्ञा । (बाहर जाकर फिर आता खाए वह जगदंबा के सामने बलि देकर खाए. अपने हेतु कभी हत्या नहीं की और न अपने राजा साहब की भाँत यम.-- (राजा से) तुझ पर जो दोष ठहराए गए मगया की । दुहाई, ब्राह्मण व्यर्थ पीसा जाता है । और डे बोल उसका क्या उत्तर देता है। महाराज, मैं अपनी गवाही के हेतु बाबू राजेन्द्रलाल के राजा- (हाथ जोड़कर) महाराज, मैंने तो अपने | दोनो लेख देता हूँ, उन्होंने वाक्य और दलीलों से सिद्ध जान सब धर्म ही किया कोई पाप नहीं किया, जो मांस कर दिया है कि मांस की कौन कहे गोमास खाना और खाया वह देवता-पितर को चढ़ाकर खाया और देखिए मद्य पीना कोई दोष नहीं, आगे के हिंद सब खाते-पीते महाभारत में लिखा है कि ब्राह्मणों ने भूख के मारे थे । आप चाहिए एशियाटिक सोसाइटी का जर्नल मंगा गोवध करके खा लिया पर श्राद्ध कर लिया था इससे | के देख लीजिए । कुछ नहीं हुआ। यम.-- बस चुप. दृष्ट! जगदंबा कहता है और यम.- कुछ नहीं हुआ, लगें इसको कोड़े। फिर उसी के सामने उसी जगत के बकरे को अर्थात २ दूत- जो आज्ञा । (कोड़े मारता है) उसके पुत्र ही को बलि देता है । अरे दुष्ट अपनी अंबा राजा-(हाथ से बचा-बचाकर) हाय-हाय, कह, जगदंबा क्यों कहता है. क्या बकरा जगत के दुहाई-दुहाई, सुन लीजिए - बाहर है ? चांडाल सिंह को बलि नहीं देता -'अजापुत्रं सप्तव्याधा दशार्णेषु मृगा : कालजर गिरौ । बलि दद्यादेवोदलघातक :' कोई है ? इसको चक्रवाका: शरद्वीपे हंसा: सरसि मानसे ।। | सूचीमुख नामक नरक में डालो । दुष्ट कहीं का वेद- तेपि जाता: कुरुक्षेत्रे ब्राह्मणा वेदपारगा : ।। पुराण का नाम लेता है । मांस-मदिरा खाना-पीना है प्रस्थिता दीर्घमध्वानं यूयं किमवसीदथ ।। तो यों ही खाने में किसने रोका है धर्म को बीच में यह वाक्य लोग श्राद्ध के पहले श्राद्ध शुद्ध होने को क्यों डालता है, बाँधो । पढ़ते है फिर मैने क्या पाप किया । अब देखिए २ दूत-जो आज्ञा महाराज । (बांध कर एक अंगरेजों के राज्य में इतनी गोहिंसा होती है सब हिंद | ओर खड़ा करता है)। बीफ खाते हैं उन्हें आप नहीं दंड देते और हाय हमसे मंत्री-(आप ही आप) मैं क्या उत्तर दै. यहाँ तो धार्मिक की यह दशा. दहाई वेदों की दुहाई धर्म शास्त्र सब बात बेरंग है । इन भयानवी भूर्तियों को देखकर की. दहाई व्यासजी की, हाय रे मैं इनके भरोसे मारा प्राण सुखे जाते हैं उत्तर क्या दं । हाय-हाय. इनके ऐसे गया । बड़े-बड़े दाँत हैं कि मुझे तो एक ही कवर कर जाएंगे । यम.- बस चुप रहो, कोई है ? यह अंधता यम.- बोल जल्दी । मिन नामक नरक में जायगा । अभी इसके अलग ३दूत- (एक कोड़ा मारकर) बोलता है कि रखो। १दूत-जो आज्ञा महाराज । (पकड़-खींचकर मंत्री- (हाथ जोड़कर) महाराज. अभी सोंचकर एक ओर खड़ा करता है)। यम.-- (पुरोहित से) बोल बे ब्राह्मणधम ! त| बड़ी कठिनाइई और बड़े-बड़े अधर्म से एकत्र किया अपने अपराधों का क्या उत्तर देता है। है सब आपको भेंट करूगा और मैं निरपराधी कुटुंबी पुरो. - (हाथ जोड़कर) महाराज, मैं क्या उत्तर हूँ मुझे छोड़ दीजिये। चित्र.- द्यक्रोध से) अरे दुष्ट, यह भी क्या. दंगा, वेद-पुराण सब उत्तर देता है । यम.-- लगें कोड़े, दुष्ट वेद-पुराण का नाम लेता | मृत्युलोक की कचहरी है कि तू हमें घूस देता है और है। क्या हम लोग वहां के न्यायकर्ताओं की भांति जंगल २दूत--जो आज्ञा (कोड़े मारता है) से पकड़ कर आए हैं कि तुम दुष्टों के व्यवहार नहीं पुरो.- दुहाई-दुहाई. मेरी बात तो | जानते । जहा तू आया हैं और जो गति तेरी है वही सुन चूस लेनेवालों की भी होगी। जीजिए । यदि मास खाना बुरा है तो दूध क्यों पीते हैं, दूध भी तो मांस ही है और अन्न क्यों खाते हैं अन्न में यम.- (क्रोध से) क्या यह दुष्ट द्रव्य दिखाता भी तो जीव है और वैसे ही सुरापान बुरा है जो वेद में है ? भला रे दृष्ट ! कोई है इसको पकड़कर कुंभीपाक सोमपान क्यों लिखा है और महाराज, मैने तो जो बकर नहीं । 1 में डालो। वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति ३१७