पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३६५

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प्रति.- देव ! केवल कोलाहल ही नहीं हुआ | कट कंडलन मुकट बिना श्रीहत दरसाए वरन आप के पत्र के उधर जाते ही सब लोग लड़ने को वाय वेग बस कंस मुछ दादी फहराए ।। भी एक संग उठ दौटे.देव! देखिए अर्जुन ने कान तक तृप तनय बाल लांग वैरि सिर खींच लींचकर जो वान चलाए है उस्से कौरव सैना में ह विधि सो नभ में फिरत | किसी के अंग भंग हो गए हैं किसी के धनुष दो इकडे तिन संग काक अरू कंक बह रक भए धावल गिरत। हो गए है किसी के सिर कट गए है किसी की आखे फूट आश्चर्य से इधर उधर देखकर) देव देखिए गई है किसी की भुजा टूट गई है किसी की साती घायल | सीस कटे भट सोहही नैन जगल बल लाल । हो रही है। बर्राह तिर्नाह नाहि हसहि गाहि नभ सुर बाल ।। इन्द्र.-(हर्ष से) वाह बेटा अब ले लिया है। इन्द्र.-(शर्ष से) मैं क्या क्या देख मेरा जी तो विद्या.- अब देखिए देखिए । बावला हो रहा है। गज जूथ सोई गन घटा मद धार धारा सरतजे इत लाखन कस संग लरत इकलो कुती नंद । तरवार चमकान बीच की दमकान गरज वाचन बजे ।। उत पीरन को वरन को लर्राह अप्सरा वृद्ध ।। गोली चलें जुगनू सोई धक वृन्द ध्वज यह सोहई विद्या.- ठीक है (दूसरी ओर देखकर) देष कातर वियोगिन दुखद रन की भूमि पायस नभ मई ।। इधर देखिए। | तव सुत सर सहि मद गलित दंत केतकी खोय । लाट पट चह दिसन बाग बन जीव जराषत । धावत गज जिनके लखें हचिनी को भ्रम होय ।। ज्याला माला लोल लहर धुज से फहरावत ।। इन्द्र.-(संतोष से) परम भयानक प्रगट प्रलय सम समय लखावत । हर सिच्छित सर रीति जिन कालकेय दियदा ह गंगा सुत कृत आंगन अन्न उमायो ही आवत ।। जो जदुनाव सनाथ कह कौरव जीतन ताहि प्रति.- देव! मुझे तो इस कड़ी आंच से डर प्रति.- महाराव देखें। लगती है। कटे कुड सृडन के रुड में लगाय तुंड मुड मुड पान विद्या.-भद्र! व्यर्थ क्यों डरता है भला अर्बन करे लेह भूत चेटी है । घोड़न चबाइ चरबीन सो अपाय | के आगे यह क्या है ? देख । | मेटी भूख सब मरे मुरदान में सभेटी हैं ।। लाल अंग | अर्जुन ने यह वरुन अस्त्र जो वेग चलायो । कोने सीस हाथन में लीने अस्थि भूखन नवीने आत | तासो नभ मै घोर घटा को मंडल छायो ।। जिनपै लपेटी है । हरख बदमय आगगन को नचाय पिये | उडि उडि करि गरज बीजरी चमक उरायो । सोनित पियासी सी पिसाचन की बेटी है ।। मुसलाधार जल बर्रास छिनक मै ताप बुझायो ।। विद्या.-देव देखिए। इन्द्र.-- बालक बड़ा ही प्रतापी है। हिलन धूजा सिर सांस चमक मिलि के घ्यूह लखात । प्रति.-देव ! राधेय ने यह भुजंगास्त्र छोड़ा है नव स्त सर लांग पूमि जन गरव गन मंडल खात ।। | देखिए अपने मखों से आग सा विष उगलते हुए अपने इन्द्र.- (आनन्द से देखता है) सिर की मणियों से चमकते हुए इन्द्रधनुष से पृथ्वी को प्रति.-- देव देखिए देखिए आप के पुत्र के धनुष व्याकुल करते हुए देखने ही से वृक्षों को जलाते हुए ग्राम | से छूटे हुए वानों से मनुष्य और हाथियों के अंग कटने कैसे-कैसे डरावने साप निकले चले जाते हैं। | से जो लह की धारा निकलती है उसे पी पी विद्या.-(देखकर) नामक अस्य नल नुका, | जोगिनिये आपके पुत्र ही की चीत मनाती है। दष्ट मनोरथ सरिस ससे लाये दुखदाई। इन्द्र - लो जय ही है क्योंकि इनकी असीस | टेढ़े जिमि खल चित्त भयानक रहत सदाई ।। | सच्ची है। बमत बदन विष निन्धक सो मुख कारिख लाए। विद्या. (देखकर दंव अब तो बड़ा ही घोर युद्ध अहिगन नभ मैं लखद भाइ के चह' दिस लाए ।। हो रहा है देखिए इन्द्र.-- क्या खांडष बन का बैर लेने आते है। विरांच नली गज संड की काटि काटि भट सीस विद्या.--आप शोच क्यों करते हैं देखिए अर्जुन रुधिर पान करि जोगिनी विवाह दोहं असीस ।। ने गारुडास्त्र छोड़ा है। टि गई दोउ भौह स्वेद सो तिलक मिटाए । निज कुल गुरु तुव पुत्र साहि तोष बढ़ाषत O नयन पसार जाल क्रोध सोंओठ चबाए ।। झाट दटि गहि हिन ट्रक करि नास मिलाषत ।। यह धनंजय विजय ३२