पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३६६

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है, देखिए । 'बादर से उड़ि चीखि चीखि दोउ पंख हिलावत । विद्या.- देव ! दुर्योधन के मुकुट गिरने से सब गरुड़न को गन गगन छयो अहि हियो डरावत ।। कौरवौं ने क्रोधित होकर अर्जुन को चारों ओर से घेर इन्द्र.-(हर्ष से) हां तब । लिया है। प्रति.- देखिए यह दुर्योधन के वाक्य से पीड़ित इन्द्र.-तो अब क्या होगा । होकर द्रोणाचार्य ने आपके पुत्र पर वारुणास्त्र छोड़ा है । विद्या. देव अब आपके पुत्र ने प्रस्वापनास्त्र विद्या.- (देखकर) वैनामक अस्त्र चल चुका चलाया है। नाक बोलावत धनु किए तकिया मूंदे नैन । रगे गंड सिंदर सो घहरत घंटा घोर । सब अचेत सोए भई मुरदा सी कुरु सैन । निज मद सों सोचत धरनि गरजि चिकारहिं जोर । इन्द्र.- युद्ध से थके बीरों को सोना योग्य ही है । सूंड फिरावत सीकरन धावत भरे उमंग । हां फिर । छावत आवत घन सरिस मरदत मनुज मतंग ।। विद्या. इंद्र.- तब तब । एक पितामह छोडि कै सबको नांगो कीन । विद्या.-तब अर्जन ने नरसिंहास्त्र छोड़ा है बांधि अंधेरी आंख मैं मुड़ि तिलक सिर दीन ।। देखिए अब जागे भागे लखौ रह्यौ न कोऊ खेत । गरजि गरजि जिन छिन मैं गर्भिनि गर्भ गिरायो । गोंधन ले तुव सुत अवै ग्वालन देखौ देत ।। काल सरिस मुख खोलि दांत बाहर प्रगटायो । शत्रु जीति निज मित्र को काज साधि सानन्द मारि थपेड़न गंड खंड को मांस चबायो । पुरजन सों पूजित लखौ पुर प्रविसत तुवनन्द ।। उदर फारि चिक्कारि रुधिर पौसरा चलायो ।। इन्द्र.-जो देखना था वह देखा। करि नैन अगिनि सम मोछ फहराइ पोंछ टेढ़ी करत । (रथ पर बैठे अर्जुन और कुमार आते हैं) गल केसर लहरावत चल्यौ क्रोधि सिंहदल दल दलत।। अ.-- (कुमार से) कुमार । दलत ।। जो मो कहं आनंद भयो करि कौरव विनु सेस । इन्द्र.-तो अब जय होने में थोड़ी ही देर है । तुव तन को बिनु घाव लखि तासों मोद विसेस ।। विद्या.- देव ! कहिए कि कुछ भी देर नहीं -जब आप सा रक्षा हो तो यह कौन बड़ी बात है। | गंगा सुत के बधि तुरग द्रोनसुत हति खेत । इन्द्र.-(आनन्द से ) जो देखना था वह देख | करन रथहि करि खंउ बहु कृप कह कियो अचेत ।। चुके । और भजाई सैन सब द्रोन सुवन धनु काट । (विद्याधर और प्रतिहारी समेत जाता है) | तुव सुत जोहत अब खड़ो दुरजोधन की बाट ।। अ.-(सन्तोष से) कमार । प्रति. दुर्योधन का तो बुरा हुआ । करी बसन बिनु द्रोपदी इन सब सभा बुलाय । विद्या. -नहीं। सो हम इनको वस्त्र हरि बदलो लीन्ह चुकाय ।। व्याकुल तुव सुत बान सों विमुख भयो रनकाज । कु.-आप ने सब बहुत ठीक ही किया क्योंकि मुकुट गिरन सों क्रोध करि फिर यो फेर कुरुराज ।। बस रन मैं मरनो भलो पाछे सब सुख सीव । (नेपथ्य में) निज अरिसौं अपमान हिय खटकत जबलौ जीव ।। सुन सुन कर्ण के मित्र । अ.- (आगे देखकर) अरे अपने भाइयों और सभा मांहि लखि द्रोपदिहि क्रोध अतिहि जिय लेत । राजा विराट समेत आर्य धर्मराज इधर ही आते हैं अग्रज परतिज्ञा करी तुव उस तोड़न हेत ।। (तीनों भाई समेत धर्मराज और विराट आते हैं। ताही सो तोहि नहिं बध्यौ न तरू अवौ कुरु ईस । धर्म.-मत्स्यराब ! देखिए । जा सर सों तोर्यो मुकुट तासों हरतो सीस ।। धूर धूसरित अलक सब मुख श्रमकन झलकात । प्रति. देव अपने पुत्र का वचन सुना । असम समर करि थकित पै जयसोभा प्रगटात ।। (विस्मय से)। सौगन्धिक तोस्यो छनक कियो हिडम्बहि घात दे भए अनुकूल तें सबही करत सहाय । हत्यौ बकासुर जिन सहज तेहि केती यह बात ।। भीम प्रतिज्ञा सों बच्यो अनायास कुरुराय ।। भीम-(विनय से) महाराज सुनिए अब हम 1 भारतेन्दु समग्र ३२४