पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३६७

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'क्षमा नहीं कर सकते । भीमसैन ही सो बदलो लैहै चुकवाई ।। धम. -बेटा क्षमा के दिन गए युद्ध के दिन आए धर्म.- बेटा तुम्हारे आगे यह क्या बड़ी बात अब इतना मत घबड़ाओ। है। विरा.-(युधिष्ठिर से) । तासों मांगत उत्तरा पुत्र बधू तुब होय ।। तुव सरूप जाने बिना लियो अनेकन काज । अ.- आपकी जो इच्छा क्योंकि । जोग अजोग अनेक विध सों छमिये महराज ।। आपु आवती लच्छमी को मूरख नहि लेत । अ.- राजन यह उपकार ही हुआ अपकार कभी सोऊ बिन मांगे मिले तो केवल हरि हेत ।। नहीं हुआ । क्योंकि । वि.- और भी मैं आपका कुछ प्रिय कर जो अजोग करते न हम सेवा वै तुम दास । सकता हूँ। तौ कोऊ विधि छिपती न यह मम अशात निवास ।। अ.- अब इस्से बढ़कर क्या होगा । विरा.-(अर्जुन से) राज पुत्र । शत्रु सुजोधन सो लही करन सहित रनजीत । सात चरनहू संग चले मित्र भए हम दोय । गाय फेरि जाए सबै पायो तुमसो मीत ।। विरा.- सत्य है। लही बधू सुत हित भयो सुख अज्ञात निवास । द्विज सोहत विद्या पढ़े छत्री रन जय पाय । तौ अब का नहिं हम लयौ जाकी राखें आस ।। लक्ष्मी सोहत दान सों तिमि कुल बधू लजाय ।। तो भी यह भरत वाक्य सत्य हो । अ.- (घबड़ाकर) अरे क्या भैया आ गए (रथ से राज वर्ग मद छोड़ि निपुन विद्या मैं होई । उतरकर दंडवत करता है। श्री हरिपद मैं भक्ति कर छल बिनु सब कोई पंडित सब- (आनन्द से एक ही साथ) कल्यान गन पर कृति लखि के मति दोष लगावें। हो-जीते रहो। छुटै राज कर मेघ समै पै जल बरसावें ।। धर्म. कजरी ठुमरिन सों मोरि मुख इकले सिव षट पुर दयौ निसचर मारे राम । सत कविता सब कोउ कहै । तम इकले जीत्यौ कुरुन नहिं अथ चौथो नाम ।। यह कविवानी बुध बदन मैं अ.- (सिर झुका कर हाथ जोड़कर) यह केवल रवि ससि लौं प्रगटित रहै ।। आपकी कृपा है। और भी विरा.- (नेपथ्य की ओर हाथ से दिखाकर) सौजन्यामृतसिन्धवः परहितप्रारब्धवीरव्रता । वाचाला : परवर्णने निजगुणालापे च मौनव्रता : ।। मिलि बछरन सो धेनु सब अवहिं द्ध की धार । आपत्स्वप्यविलुप्तधैर्यनिचयास्सम्पत्स्वनुत्सेकिनो । तुव उज्जल कीरति मनहुँ फैलत नगर मंझार ।। माभूवनु खलवक्त्रनिर्गतविषम्लाननास्सज्जना:' ।। और विरा.-तथास्तु । खीच्यौ कृष्णा केस जो समर मांहि कुरुराज । (सब जाते हैं) सो तुस मुकुट गिराइ कै बदलो लीनहों आज ।। श्री धनंजय विजय नाम का व्यायोग श्रीहरिश्चन्द्र भीम- (सुनकर क्रोध से) राजन् अभी बदला | अनुवादित समाप्त हुआ । नहीं चुका क्योंकि । विदित हो कि यह जिस पुस्तक से अनुवाद किया तोरि गदा सों हृदय दुष्ट दुस्सासन केरो । गया है वह संवत् १५२७ की लिखी है और इसी से तासों ताजो सद्य रुधिर करि पान घनेरो ।। बहुत प्रमाणिक है इससे इसके सब पाठ उसी के ताही करसों कृष्णा की बेनी बंधवाई। अनुसार रक्खे हैं। राजपुत्र देखो। 0* धनंजय विजय ३२५