पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३७

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ka को लिखे उनके पत्र से मिलती है । इस अनुवाद की पांच सौ प्रतियां हिन्दी जानकारों के बीच वितरित कराकर अनुवाद की प्रामाणिकता जांचने के लिए भारतेन्दु ने हेन फोर्ड को खुद भेजा था। साधु भाषा (खड़ी बोली) में लिखी कविताओं के प्रकाशन के सम्बन्ध में भारतेन्दु के सम्पादक को लिखे पत्र की चर्चा तो काफी हुई है। ये सभी पत्र या उनके अंश इस संग्रह में है। इस ग्रंथ में सम्मिलित भारतेन्दु की विज्ञप्तियाँ भी बड़े ममत्व की हैं। बिट्रेन के किसी उपनिवेश के गवर्नर पोप हेन्सी ने इल्बर्ट बिल के सम्बन्ध में भारतेन्दु जी को एक पत्र लिखा था कि लार्ड रिपन की सुनीति के सम्बन्ध में क्या आप अपनी लेखनी नहीं उठायेंगे । इस सन्दर्भ में उनके मौन का लाभ लेकर एक कर्नल साहब ने कहा था कि भारतेन्दु "जुरिजडिकशन बिल' के विरोधी है । भारतेन्दु जी ने तत्काल इस गलतफहमी को दूर करने के लिए हिन्दी और अंग्रेजी के अखबारों में एक विज्ञप्ति प्रकाशित कर अपनी स्थिति स्पष्ट की। अधिकांश विज्ञप्तियां कविवचन सुधा में प्रकाशित हैं। एक विज्ञप्ति के द्वारा उन्होंने सर्वसाधारण को सूचित किया था कि १ जनवरी से ३१ दिसम्बर १८७१ तक हिन्दी और संस्कृत में जितनी पुस्तकें छपें उनकी एक प्रति भेजकर मूल्य मंगवा लें । दूसरी विज्ञप्ति के द्वारा किन्हीं शीतला प्रसाद जी के पुस्तकालय की जर्जर अवस्था को सुधारने के लिए अर्थदान का आग्रह किया गया है । एक विज्ञप्ति में गोवध निवारण विषय पर काव्य रचना को पुरस्कृत करने की घोषणा है, तो दूसरी में कुरानशरीफ के हिन्दी अनुवाद के प्रकाशन के सम्बन्ध में कहा गया है कि यदि सौ ग्राहक बन जाये तो इस विराट ग्रंथ का मुद्रण आरम्भ किया जाय । एक विज्ञप्ति से यह भी ज्ञात होता है कि वे 'कासिद' नामक एक उर्दू साप्ताहिक निकालना चाहते थे, जिसका मूल्य भी उन्होंने दस रूपया वार्षिक रखा था, पर जो किसी कारणवश न निकल सका । इन संग्रहीत विज्ञप्तियों में कुछ व्यापारिक भी है । इनसे व्यापार की ओर भारतेन्दु के अस्थायी रुझान का पता चलता है । पर वे व्यापार भी अपनी शान के अनुसार ही करना चाहते थे। जैसे बनारसी माल, लेवेन्डर एवं इत्र आदि का । पर उनके अलमस्त कवि को मूलतः इसके लिए फुरसत कहा थी ? कुछ विज्ञप्तियाँ कवितावद्विनी सभा" के सम्बन्ध में भी हैं । एक विज्ञप्ति में काशी में "चौक से गुदौलिया जो नई सड़क निकली है, उसके बीच में एक शिवाला है, ईश्वर उसको खुदने से बचावै" की प्रार्थना की गयी है । कुछ विज्ञप्तियाँ भारतेन्दु की अस्वस्थता का उल्लेख करती हुई इस सम्बन्ध की भी हैं कि मैं जैसा चाहता था, वैसा अंक निकल नहीं पाया । भारतेन्दु के सम्पादकीय नोट और सम्पादक के नाम पत्र भी उनको समझने के लिए बड़े काम के हैं । 'श्रृंगार रत्नाकार' नामक एक ग्रंथ काशिराज ने सं. १९१९ में प्रकाशित कराया था । इस ग्रंथ के लेखक थे तारा चरण तर्करन । भारतेन्दु ने इस में स्थापित मान्यताओं पर एक सम्पादक के नाम पत्र लिखा है। इनमें उनकी इस मीमांसा पर गम्भीर प्रकाश पड़ता है। हरिश्चन्द्र मैगजीन के पहले ही अंक में एक सम्पादकीय टिप्पणी इस प्रकार है: -"अंग्रेजों को घूस, सलाम, बंदगी ऐड्रेस सब कुछ मिलता है । धन विद्या कौशल सब उनके पास है । उन्हीं के आवभगत के लिए सभाएं होती हैं । एक और बल उनके पास है । हिन्दुस्तानियों के हिस्से में मूर्खता है, कायरता, धक्के खाना पड़ा है । जो भाग्यशाली हैं, वे दरबार में कुर्सी पाते हैं, कौंसिल मेम्बरी और सितारे हिन्द का खिताब पाते हैं।" -ऐसे ही तीखी और चोट करनेवाली उनकी टिप्पणियाँ है। इनके अतिरिक्त दो लेख और एक पुस्तक परिहासिनी और दिये गये हैं । ये न तो भारतेन्दु ग्रंथावली में ही हैं और न भारतेन्दु के पिछले किसी संग्रह में । लेख है-'लेखक और नागरी लेखक तथा 'हिन्दी भाषा' । 'परिहासिनी' उनके व्यंग्य और चुटुकुले का संग्रह है। पैंतीस -