पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४०१

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भागु.- यह फल निकाला है कि चाणक्य बड़ा तिमि चाणक्यहु पाइ दुख एक प्रतिज्ञा पूरि बुद्धिमान है, वह व्यर्थ चंद्रगुप्त को क्रोधित न करावेगा अब दुजो करिहै न कछ निज उद्यम मद चूरि ।। और चंद्रगुप्त भी उसकी बात जानता है, वह भी बिना राक्षस- ऐसा ही होगा । मिन्न शकटदास ! बात चाणक्य का ऐसा अपमान न करेगा, इससे उन जाकर करभक को डरा इत्यादि दो । लोगों में बहुत झगड़े से जो बिगाड़ होगा तो पक्का मलय. जो आज्ञा । होगा। (करभक को लेकर जाता है) आर्य ! और भी कई कारण हैं। राक्षस- इस समय कुमार से मिलने की इच्छा राक्षस-कौन ? कर.- कि जब पहले यहाँ से राक्षस और कुमार मलय.- (आगे बढ़कर) मैं आप ही आपसे मलयकेतु भागे तब उसने क्यों नहीं पकड़ा ? मिलने को आया हूँ। राक्षस- (हर्ष से) मित्र शकटदास! अब तो राक्षस- (आसन से उठकर) अरे कुमार आप चंद्रगुप्त हाथ में आ जायगा । ही आ गए! आइए, इस आसन पर बैठिए । शकट.- अब चंदनदास छूटेगा, और आप मलय.- मैं बैठता हूँ आप बिराजिए । कुटुंब से मिलेंगे, वैसे ही जीवसिद्धि इत्यादि लोग क्लेश (दोनों बैठते हैं) से छूटेंगे। मलय.- इस समय सिर की पीड़ा कैसी है ? भागु.- (आप ही आप) हाँ, अवश्य जीवसिद्धि राक्षस- जब तक कुमार के बदले महाराज का क्लेश छूटा। कहकर आपको नहीं पुकार सकते तब तक यह पीड़ा मलय.-मित्र भागुरायण ! अब मेरे हाथ कैसे छूटेगी। चंद्रगुप्त आवेगा, इसमें इनका क्या अभिप्राय है ? मलय.- आपने जो प्रतिज्ञा की है तो सब कुद भागु.- और क्या होगा ? यही होगा कि होईगा । परंतु सब सेना सामंत के होते भी अब आप चाणक्य से छूटे चंद्रगुप्त के उद्धार का समय देखते है । किस बात का आसरा देखते हैं? राक्षस अजी, अब अधिकार छिन जाने पर राक्षस-किसी बात का नहीं, अब चाई यह ब्राह्मण कहाँ है? कीजिए। कर.- अभी तो पटने ही में है। मलय.- अमात्य ! क्या इस समय शत्रु किसी राक्षस- (घबड़ाकर) हैं! अभी वहीं है? संकट तपोवन नहीं चला गया ? या फिर कोई प्रतिज्ञा नहीं राक्षस-बड़े । की? मलय.-किस संकट में ? कर.- अब तपोवन जायगा ऐसा सुनते राक्षस मंत्री संकट में। मलय.-मंत्री-संकट तो कोई संकट नहीं है। राक्षस- (घबड़ाकर) शकटदास, यह बात तो राक्षस-और किसी राजा को न हो तो न हो, चंद्रगुप्त को तो अवश्य है। देव नंद को नहिं सह्यौ जिन भोजन अपमान । मलय.- आर्य ! मेरी जान में चंद्रगुप्त को और सो निज कृत नृप चंद की बात न सहिहै जान ।। भी नहीं है। मलय.-मित्र भागुरायण ! चाणक्य के तपोवन राक्षस आपने कैसे जाना कि चंद्रगुप्त को जाने वा फिर प्रतिज्ञा करने में कौन कार्य सिद्धि मंत्री-संकट संकट नहीं है? निकाली है। मलय.- क्योंकि चंद्रगुप्त के लोग तो चाणक्य भागु.- कुमार ! यह तो कोई कठिन बात नहीं | के कारण उससे उदास रहते हैं, जब चाणक्य ही न है, इसका आशय तो स्पष्ट ही है कि चंद्रगुप्त से जितनी | रहेगा तब उसके सब कामों के लोग और भी संतोष से दूर चाणक्य रहेगा उतनी ही कार्यसित होगी । शकट.- आमात्य ! आप व्यर्थ सोच न करें. राक्षस-कुमार, ऐसा नहीं है, क्योंकि वहाँ दो क्योंकि देखें प्रकार के लोग हैं - एक चंद्रगुप्त के साथी, दूसरे सबहिं भाँति अधिकार लहि अभिमान नृप चंद । नंदकुल के मित्र, उनमें जो चंद्रगुप्त के साथी हैं उनको नहिं सहिहै अपमान अब राजा होइ स्वच्छंद ।। चाणक्य ही स दु:ख था ; नंदकुल के मित्रों को कुछ काम की नहीं, करेंगे। मुद्रा राक्षस ३५७