पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४०६

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भागु.-लिख लेकर देखकर) कुमार ! इस इसकी भी मुहर बचाकर हमको दिखलाओ । लेख पर अमात्य राक्षस की मुहर है 1 (भागुरायण पेटी खोलकर दिखलाता है) मलय. ऐसी तरह से खोलकर दो कि मुहर न मलय.-अरे! यह तो वही सब आभरण हैं जो टूटे। हमने राक्षस को भेजे थे । निश्चय यह चंद्रगुप्त को (भागुरायण पत्र खोलकर मलयकेतु को देता है) लिखा है। मलय.- (पढ़ता है) स्वति । यथास्थान में मागु.-कुमार ! अभी सब संशय मिट जाता कहीं से कोई किसी पुरुष-विशेष को कहता है हमारे | है । मासुरक ! उसको और मारो । विपक्ष को निराकरण करके सच्चे मनुष्य ने सचाई पुरुष-जो आज्ञा । बाहर जाकर फिर आता है) दिखलाई । अब हमारे पहले के रखे हुए हमारे | आर्य ! हमने उसको बहुत मारा है । अब कहता है कि हितकारी मित्रों को भी जो-जो देने को कहा था वह देकर अब हम कुमार से सब कह देंगे। प्रसन्न करना । यह लोग प्रसन्न होंगे तो अपना आश्रय मलय.-- अच्छा, ले आओ। छूट जाने पर सब माँति अपने अपने उपकारी की सेवा पुरुष - जो कुमार की आज्ञा । (बाहर जाकर करेंगे । सच्चे लोग कहीं नहीं भूलते तो भी हम स्मरण | सिद्धार्थक को लेकर आता है) कराते हैं । इनमें से कोई तो शत्रु का कोष और हाथी सिद्धा.- (मलयकेतु के पैरों पर गिरकर) चाहते हैं और कोई राज चाहते हैं । हमको सत्यवादी ने | कुमार ! हमको अभय दान दीजिए । जो तीन अलंकार भेजे सो मिले । हमने भी लेख अशून्य मलय.- मद्र! उठो, शरणागत जन यहाँ सदा करने को कुछ भेजा है सो लेना । और जबानी हमारे अभय हैं । तुम इसका वृत्तांत कहो । अत्यंत प्रमाणिक सिद्धार्थक से सुन लेना ।' सिखा.- (उठकर) सुनिए । मुझको अमात्य मलय.-मित्र मागुरायण ! इस लेख का आशय राक्षस ने यह पत्र देकर चंद्रगुप्त के पास भेजा था । क्या है ? मलय.- जबानी क्या कहने को कहा था वह भागु.-भद्र सिदार्थक! यह लेख किसका | कहो । सिद्धा.

- कुमार ! मुझको अमात्य राक्षस ने

सिद्धा.-आर्य! नहीं जानता । यह कहने को कहा था कि मेरे मित्र कुलूत देश के राजा भागु.. .-- धूर्त ! लेख लेकर जाता है और यह | चित्रवर्मा, मलयाधिपति सिंहनाद, कश्मीरेश्वर नहीं जानता कि किसने लिखा है, और संदेसा किससे | पुष्कराक्ष सिंघु-महाराज सिंधुसेन और पारसीकपालक मेघाक्ष इन पाँच राजाओं से आपसे पूर्व में संधि हो चुकी सिद्धा.- (डरते हुए की भांति) आपसे । है । इसमें पहले तीन तो मलयकेतु का राज चाहते हैं और बाकी दो खजाना और हाथी चाहते हैं । जिस तरह सिद्धा.- आपने पकड़ लिया । हम कुछ नहीं | महाराज ने चाणक्य को उखाड़कर मुझको प्रसन्न किया जानते कि क्या बात है? उसी तरह इन लोगों को प्रसन्न करना चाहिए । यही भागु.- (क्रोध से) अब जानेगा ! भद्र भासुरक ! | राजसंदेश है । इसको बाहर ले जाकर जब तक यह सब कुछ न मलय.- (आप ही आप) क्या चित्रवादिक बतलावे तब तक खूब मारो । भी हमारे द्रोही हैं । तभी राक्षस में उन लोगों की ऐसी पुरुष-जो आज्ञा (सिद्धार्थक को बाहर लेकर | प्रीति है । (प्रकाश) विजये ! हम अमात्य राक्षस को जाता है और हाथ में एक पेटी लिए फिर आता है) | देखा चाहते है। आर्य! उसको मारने के समय उसके बगल में से यह (जाती है) मुहर की पेटी गिर पड़ी। (एक परदा हटता है और राक्षस आसन पर बैठा हुआ भागु. (देखकर) कुमार ! इस पर भी राक्षस | चिंता की मुद्रा में एक पुरुष के साथ दिखाई पड़ता है) की मुहर है। राक्षस- (आप ही आप) चंद्रगुप्त की ओर के मलय.- यही लेख आशून्य करने को होगी । । बहुत लोग हमारी सेना में भरती हो रहे हैं इससे हमारा, कहेगा? मागु.- क्यों रे! हमसे ? प्रति. जो आज्ञा । १. यह वही लेख है जिसको चाणक्य ने शकटदास से धोखा देकर लिखवाया था और अपने हाथ से राक्षस', की मुहर उस पर कर के सिद्धार्थक के दिया था । भारतेन्द समग्र ३६२