पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४५८

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1 महाराष्ट्री की शिक्षा पाकर प्रति वर्ष अनेक विद्यार्थी का चित हरण करते हैं। विद्योत्तीर्ण होकर प्रतिष्ठालाभ करते हैं; इनके जहाँ स्वर लय छंद मात्रा, हस्तकंपादि से शुद्ध अतिरिक्त पडितों के घर में तथा हिंदी फारसी पाठकों वेदपाठ की ध्वनि से जो मार्ग में चलते वा घर बैठे सुन की निज शाला में अलग ही लोग शिक्षा पाते हैं, और पड़ती है, तपोवन की शोभा का अनुभव होता है । राय शंकटाप्रसाद के परिश्रमोत्पन्न पबलिक लाइब्रेरी, जहाँ द्रविड. मगध, कान्यकुब्ज, महाराष्ट्र. बंगाल, मुनशी शीतलप्रसाद का सरस्वती-भवन, हरिश्चंद्र का पंजाब, गुजरात इत्यादि अनेक देश के लोग परस्पर सरस्वती और भंडार इत्यादि अनेक पुस्तक-मंदिर हैं, | मिले हुए अपना-२ काम करते दिखते हैं और वे एक जिनमें साधारण लोग सब विद्या की पुस्तकें देखने पाते एक जाति के लोग जिन मुहल्लों में बसे हैं वहाँ जाने से ऐसा ज्ञान होता है मानों उसी देश में आए हैं. जैसे जहाँ मानमदिर ऐसे यंत्रभवन, सारनाथ की धमेक बंगाली टोले में ढाके का . लहौरी टीले में अमृतसर का से प्राचीनावशेष चिह्न, विश्वनाथ के मंदिर का वृषभ और ब्रह्माघाट में पूने का भ्रम होता है। और स्वर्ण-शिखर, राजा चेतसिंह के गंगा पार के जहाँ निराहार, पयाहार. यताहार, भिक्षाहार, मंदिर, कश्मीरीमल की हवेली और क्वींस कालिज की रक्तांबर, श्वेतांबर, नीलांबर. चाम्बर. दिगंबर, शिल्पविद्या और माधोराय के धरहरे की ऊंचाई देखकर दंडी, संन्यासी. ब्रह्मचारी, योगी, यती, सेवड़ा, विदेशी जन सर्वदा रहते है। फकीर, सुधरेसाई, कनफटे, ऊर्ध्ववाहु, गिरि, पुरी, जहाँ महाराज विजयनगर के तथा सरकार के भारती, वन, पर्वत, सरस्वती, किनारामी, कबीरी, स्थापित स्त्री-विद्यामंदिर, औषधालय, अंधभवन, दादपंथी. नान्हकसाही. उदासी, रामानंदी. कौल. उन्मत्तागा इत्यादिक लोकद्वयसाधक अनेक कीर्तिकर अघोरी. शैव, वैष्णव, शाक्त गाणपत्य, सौर इत्यादि कार्य हैं वैसे ही चूड़वाले इत्यादि महाजनों का सदावर्त हिंद और ऐसे ही अनेक भौत के मुसलमान फकीर और श्री महाराजाधिराज सेंधिया आदि के अटल सत्र से नित्य इधर से उधर भिक्षा उपार्जन करते फिरते हैं और | ऐसे अनेक दीनों के आश्रयभूत स्थान है जिनमें उनको इसी भाँति सब अंधे लँगड़े. लूले, दीन, पंगु, असमर्थ अनायास ही भोजनाच्छादन मिलता है लोग भी शिक्षा पाते हैं. यहां तक कि आधी काशी केवल अहोबल शास्त्री, जगन्नाथ शास्त्री, पंडित नाता लोग के भरोसे नित्य अन्न खाती है। काकाराम, पंडित मायादत्त, पडित हीरानंद चौबे जहां हीरा. मोती. रूपया. पैसा. कपड़ा. अन्न, धी. काशीनाथ शास्त्री, पंडित भवदेव, पंडित सुखलाल ऐसे तेल. अतर. फुलेलक, पुस्त खिलौने इत्यादि की धुरंधर पंडित और भी जिनका नाम इस समय मुझे दूकानों पर हजारों लोग काम करते हुए मोल लेते | स्मरण नहीं आता अनेक ऐसे ऐसे हुए है, जिनकी विद्या बेचते र गली करते दिखाई पड़ते हैं। | मानों मंडन मिश्र की परंपरा पूरी करती थी । जहा की बनी कमखाब बाफता. हमरू. समरू; जहाँ विदशी अनेक तत्ववेत्ता धार्मिक धनीजन घबार गुलबदन, पोत. बनारसी साड़ी दुपट्टे. पीताम्बर, कुटुंब देश विदेश छोड़कर निवास करते उपरने, चोलखंड, गोंटा, पट्ठा इत्यादि अनेक उत्तम में मग्न सुख-दु:ख भुलाए संसार को यथारूप में देखते वस्तुएँ देशविदेश जाती हैं और जहाँ की मिठाई. सुख से निवास करते हैं। खिलोने, चित्र टिकुली. बीड़ा इत्यादि और भी अनेक जहाँ पडित लोग विद्यार्थियों को मृक. यजु : साम, सामग्री ऐसी उत्तम होती हैं कि दूसरे नगर में कदापि अथर्व महाभारत, रामायण, पुराण, उपमुराण, स्मृति. स्वप्न में भी नहीं बन सकतीं। न्याय व्याकरण सांख्य पातंजल, वैशेषिक. मीमांसा, जहाँ प्रसादी तुलसी माला फूल के पवित्र और स्नायी वेदांत, शैव, वैष्णव. अलंकार साहित्य, ज्योतिष स्त्री पुरुषों के अंग के विविध चंदन, कस्तूरी. अतर इत्यादि शास्त्र सहज पढ़ाते हुए मूर्तिमान गुरु और इत्यादि सुगंधि द्रव्य के मादक आमोद संयुक्त परम व्यास से शोभित काशी की विद्यापीठता सत्य करते हैं। शीतलकण तापत्रय विमोचक गंगाजी के स्पर्श मात्र से जहाँ भिन्न देनिवासी आस्तिक विद्यार्थीगण अनेक लौकिक अलौकिक ताप से तापित मनुष्यों का परस्पर देव-मंदिरों में. घाटों पर, अध्यापकों के घर में, चित्त सर्वदा शीतल करते हैं। पंडित सभाओं में वा मार्ग में मिलाकर शास्त्रार्थ करते जहाँ अनेक रंगों के कपड़े पहने, सोरहो सिंगार हए अनर्गल धारा प्रवाह संस्कृत भाषण से सुनने वालों । बत्तीसो अभरन सजे पान खाए मिस्सी की धड़ी जमाए

भारतेन्दु समग्न ४१४ हुए तचिता