पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५३९

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को प्रस्तुत है? की पूरी जमा है। मनुष्य उसको चोरी से न उपार्जन करे । काँपता हुआ धीमे स्वर से निवेदन करु 'महाराज ने अंनत-यह तो ईश्वर की दया थी जिससे यादव कृपापूर्वक मुझ पर गए बुध को थूका था और फलाने ने अपने परिश्राम का इस प्रकार से फल पाया । इसमें दिन ठोकर मारी थी और फलाने दिन कुते की उपाधि दी थी, अत : इन कृपाओं के बदले मैं उतना रुपया देने उनका कुछ वश न था वरच केवल ईश्वर की माया से यह बात प्रकट हुई । पर क्या आप का यह तात्पर्य है कि इतिहास में इस कथा के निखने से यह अभिप्राय था अनंत- मैं तुझे फिर भी ऐसा कहूँगा और तुझ कि ब्याज लेना उचित समझा जाय, या आप अपने पर थूकूँगा और लात मारूंगा । यदि तुझे रुपया उधार रुपये और अशरफी को भेडा भेड़ी समझते हैं । देना है तो मुझे अपना मित्र समभ कर मत दे (क्योंकि शैलाक्ष मैं यह नहीं कह सकता परंतु मैं मित्रता रुपये से जो एक बाँझ की भाँति है बच्चे कव उनसे बच्चे वैसे ही शीघ्न उत्पन्न कर लेता हूँ। परंतु उत्पन्न कर सकती है ?) वरंच अपना शत्रु समझ कर नेक इस बात को सुनिए। जिससे भंगप्रतिज्ञ होने पर तुझे सर्व प्रकार से प्रतिज्ञानुसार दंड ग्रहण करने का मुँह पड़े । अनंत- बसंत इस पर विचार करो, राक्षस भी अपने स्वार्थ के लिये इतिहास और पुराण का प्रणाम दे शैलाक्ष- वाह वाह देखिए तो आप कैसा आपे से बाहर हो गये। मैं आपसे मित्रता का नाता रक्खा सकता है । दुष्ट मनुष्य जो अपनी निष्कलंकता प्रकट करता है एक हँसमुख बात करनेवाला होता है। वह चाहता हूँ और पिछले बैरों को भुला कर आपके स्नेह एक सेठ की भाँति है जिसका छिलका बहुत स्वच्छ की आशा रखना हूँ, मैं आपको रुपया उधार देने को और उत्तम है परंतु भीतर बिलकुल सड़ा हुआ है, देखो प्रस्तुत हूँ और सूद एक पैसा नहीं चाहता तिस पर भी देखने में कैसी चिकनी चुपड़ी होती है । सूरत झूठ आप मेरी बात नहीं सुनते । क्या यह मेरा बर्ताव मित्रता का नहीं है? शैलाक्ष छ: हजार रुपया -यह तो एक और महीने भी तीन-तो हमें भाव बसंत-यह आपकी दया है ? सोचने दीजिए। शैलाक्ष मैं इस कृपा को दिखलाऊँगा। अनंत-- स्पष्ट कहो रूपया देना है या नहीं । (अनंत से) मेरे साथ किसी व्यवस्थापक के यहाँ चलिए और उसके सामने तमस्सुक पर अपनी मुहर कर शैलाक्ष-अनंत महाशय आपने बाजार में दीजिए और हँसी की रीति पर यह शर्त लिख दीजिए कि सहस्रों ही बार मेरे धन और लाभ के लिये मेरी दुर्दशा की होगी पर मैंने क्षमा करने के सिवाय कभी कुछ उत्तर यदि अमुम दिन और अमुक स्थान पर आप मेरा रुपया जिसका तमस्सुक में वर्णन है न चुका दें तो मुझे नहीं दिया क्योंकि क्षमा हमारी जाति का चिन्ह है। अधिकार होगा कि उसके बदले में पापके जिस शरीर आप मुझे नास्तिक, गलकट्टा और कुत्ता कह कर मेरे के अंश से चाहूँ आध से माँस काट लूँ । जातीय परिधान पर थूकते थे ओर यह सब केवल इस अपराध के लिये कि मैं अपनी जमा को जिस भांति अनत-मैं चित्त से प्रसन्न हूँ और इन शतों पर लाता हूँ । अस्तु तो अब जान पड़ता मुहर कर दूंगा और यह भी कहूंगा कि इस जैन में बड़ी है कि आप मेरी सहायता के अपेक्षी हैं, आप मेरे पास मनुष्यता है। हैं । और कहते हैं कि शैलाक्ष हमें रुपया ऋण आए बसंत-तुम मेरे लिये ऐसे तमस्सुक पर दो-ऐ आप ऐसा कहते हैं, आप जो मेरी डाढ़ी को हस्ताक्षर न करने पाओगे इससे तो मैं अपनी । अपना उगालदान समझते थे और मुझे ठीक इस तरह दरिद्रावस्था में रहना ही श्रेय समभूगा । ठोकर मारते थे जैसे कोई अपनी देहली पर अनजान अनंत- क्यों? डरो मत- प्रतिज्ञा भंग होने कुते को मारता है । आपकी प्रार्थना रुपये की है की घड़ी कदापि न आवेगी -दो महीने के भीतर इसका मैं आपको क्या उत्तर दूँ? क्या मैं आपसे यह पू, कि साहिब कहीं कुत्ते के पास भ रुपया अर्थात तमस्सुक की मिती पूजने के एक महीना पहिले सुना है? कभी संभव है कि अपवित्र कुत्ता भी छ सहस्र मुद्रा ऋण मुझे आशा है कि इसका तिगुना धन मेरे पास पहुंच जायगा। दे सके ! या नम्रता से सिरसं झुका कर भृत्य की भांति दुर्लभ बन्धु ४२५ चाहता हूँ काम -