पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५४०

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कीजिएगा । शैलाक्ष – हे ईश्वर, ये आर्य्य भी कैसे मनुष्य समीप मैं रहता हूँ और जिसकी छाया में पला हूँ। होते है ! जैसा इनका चित्त कठोर होता है वैसा ही औरों उत्तर के देश जहाँ सूर्य की गर्मी वर्फ के टुकड़ों को भी का भी समझ कर संदेह करते हैं ! भला यह तो | नहीं गला सकती वहां के किसी सुंदर से सुंदर युवा बतलाइये कि यदि इन्होंने प्रतिज्ञा भंग की तो तुझे इस को मेरे सामने लाओ और हम दोनों तुम्हारे प्रेम के शर्त के पूरा कराने से क्या लाभ, होगा ? मनुष्य के लिये अपने शरीर में नश्तर चुमावें तो विदित होगा कि शरीर का आध सेर मांस किस रोग की औषधि है और | किस का रुधिर अधिक रक्त है । सखी तुम विश्वास वह किस गिनती में है ? क्या वह उतना भी काम में मानों कि मेरे इसी चेहरे ने बड़े से बड़े वीरों का पिता आ सकता है जैसा भेड़ी बकरी का मास ? सुनिए केवल पानी कर दिया है. और मैं अपने प्रेम की सौगंद खा कर इनसे मैत्री करने के लिये मैं इनके साथ ऐसी कृपा कहता हूँ कि इसी मुख को मेरे देश की परम सुंदरी करता हूँ, यदि यह इसे समझे तो अच्छी बात है नहीं युवतियाँ भी चाहती हैं । मैं अपने इस रंग को किसी तो प्रणाम, और मेरी प्रीति के बदले मेरे साथ बुराई न अवस्था में बदलना पसंद न करूंगा पर हाँ तुम्हारी प्रसन्नता के लिये । अनंत- हाँ शैलाक्ष में इस तमस्सुक पर मुहर पुरश्री- मेरी रुचि के लिये केवल मेरी आँखें कर दूंगा। ही नहीं हैं और न मैं किसी भांति अपनी इच्छा के शैलाक्ष अभी व्यवस्थापक के घर पर अनुसार पति बन सकती हूँ, किंतु ऐ प्रसिद्ध राजकुमार, जाइए और इस हर की दस्तावेज के लिखने को | यदि मेरे पिता ने मुझे परवश न कर दिया होता अर्थात कहिए । मैं भी शीघ्र ा जा कर थैली में छ हजार रुपये | इस बात की उलझन न लगा दी होती कि जो कोई मुझे लिये हुए वहीं पहुँचता हूँ और अपना घर भी देखता उस विधि से जीते (जिसका आपसे मैं वर्णन कर चुकी आऊँगा जिसे एक बड़े बहुव्ययी और अविश्वासी मृत्य है) उसकी मैं स्त्री बनूं तो जिन लोगों को मैने अव को सौंप आया हूँ - मैं सब काम कर के बात की बात तक देखा है उनमें से आपको किसी की अपेक्षा पूर्ण में आप से मिलता हूँ। (जाता है) मनोरथ होने का अवसर कम न था । अनंत-अच्छा झटपट जाओ । यह जैन ऐसा मोरकुटी-मैं इतनी कृपा के लिये भी कृपालु होता जाता है कि आर्य बन जायगा । धन्यवाद करता हूँ, तो ईश्वर के लिये मुझे संदूकों के पास ले चलो जिसमें अपने प्रारब्ध की परीक्षा करूँ। बसंत-मैं चिकनी चुपड़ी बातें और दुष्ट शपथ है इस खंग की, जिसने राजा को वध किया और अंत:करण नहीं पंसद करता । इंदर के उस राजकुमार को मारा जो महाराज सुलक्षण अनंत- आओ, इसमें कोई धोका नहीं हो से तीन लड़ाइयाँ जीता था, तुम्हारे मिलने की आशा में सकता क्यों कि मेरे जहाज मिति पूजने के एक महीना | मैं संसार में वीर से वीर का सामना करने को प्रस्तुत हूँ. पहिले अवश्य ही पहुंच जायेंगे । (जाते हैं रीछ की मादा के सामने से उसके बच्चे उठा लाने को उपस्थित हूँ, सिंह जिस समय के शिकार की खोज में गरज रहा हो उसकी आँख निकाल लाने को प्रस्तुत हूँ-पर हाय ऐसी अवस्था में किसका वश है ! यदि द्वितीय अंक हारीत और लक्षेन्द्र पासा फेंक कर इस बात को निश्चय करना चाहें कि दोनों में कौन बड़ा आदमी है तो संभव है। कि पासे के पड़ने से अनारी जीत जाय और संसार स्थान -विल्वमठ । पुरश्री के घर का एक कमरा का सबसे बड़ा पहलवान अपने एक नीच नौकर (तुरहियाँ बजती हैं । मोरकुटी का राजकुमार अपने के सामने नीचा देख्ने । ऐसे ही संयोग से मेरी अवस्था सभासदों के सहित और पुरश्री, नरश्री और अपनी हो सकती है कि अपने लक्ष्य में प्राप्त करने में असमर्थ इसरी सहेलियों के संग आती है।) हूँ जिसे कदाचित एक साधारण व्यक्ति भी कर ले और मूझे कुढ कुढ़ कर मरना पड़े। मोरकुटी- मेरी रंगत देखकर मुझसे घृणा न करना क्योंकि यह तो सूर्य की दी हुई वर्दी है जिसके पुरश्री- लाचारी है भारतेन्दु समग्र ४९६ तुम्हारा पहिला दृश्य -बिना मंजूषा चुने हुए