पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

"गर बर आई आ— मेरी तो रुखसत आपको, जसोदा-तुम कौन हो ? शीघ्र बतलाओ आपने बेटे को खोया और मैंने बाप को।" जिसमें मेरा पूरा संतोष हो जाय । यद्यपि मै शपथ खा (जाती है सकती हैं कि मैं तुम्हारा शब्द पहिचानती हूँ। लवग तुम्हारा प्रेमी लवंग। जसोदा-निस्संदेह तुम लवंग हो, और सचमुच मेरे प्यारे, क्योंकि मैं तुम्हारे सिवाय किसको छठा दृश्य प्यार करती हूँ ? किंतु प्यारे इस बात को सिवाय तुम्हारे (स्थान - शैलाक्ष के घर के सामने) कौन जान सकती है कि मैं भी तुम्हारी प्यारी हूँ या (गिरीश और सलारन भेस बदले हुए आते हैं) नहीं? गिरीश- यही बरामदा है जिसके नीचे लवंग ने लवग-इस बात का साक्षी तो ईश्वर और हमें खड़े रहने को कहा था । तुम्हारा मन है। सलारन उनका समय तो हो गया । जसोदा-लो इस संदूक को सम्हालो, इसमें गिरीश-आश्चर्य कि उन्होंने देर की हम लोगों के परिश्रम का पूरा मिहनताना मिलेगा । क्योंकि अनुरागियों की चाल तो सदा घड़ी से तीव्र रहती मुझे हर्ष है कि रात का समय है और तुम मेरी सूरत नहीं देख सकते क्योंकि मुझे अपने इस वेष पर बड़ी सलारन- ओह ! नये अनुरागी कामदेव के लज्जा आती है : पर प्रम अंधा होता है और प्रमो अपनी कबूतर की भांति अनुराग की दस्तावेज पर मुहर करने मूर्खता की बातों को कभी नहीं देख सकते, क्योंकि यदि को तो दस गुने तेज उड़ते हैं पर फिर उसकी उलझन वह देख सकें तो कामदेव आप मुझे लड़के के वेष में में उतने ही सुस्त हो जाते हैं । देख कर लज्जित हो जाय । गिरीश-यह तो नियम की बात है । किसी को लवग-उतरो, क्योंकि तुम्हें मशअल भी खाने के पश्चात् वह भूख नहीं रह जाती है जो खाने दिखलानी होगी। पर बैठने के समय थी? कोई घोड़ा भी उस तीव्रगति के जसोदा- क्या मैं अपनी निर्लज्जता को आप साथ लौट सकता है जिसके साथ वह चला था ? संसार ही मशाल लेकर दिखाऊँ ? वह तो स्वयं अत्यंत में जितनी वस्तुएँ हैं उनके मिलने के पूर्व जो उत्साह रहता है वह उनके मिलने पर नहीं रहता जैसा कि कहा प्रकाशमान है । प्यारे, मशअलची तो इसलिये होता है कि अंधेरे में की वस्तुओं को प्रकट करे पर मुझे तो भी है । "जो मजा इंतिजार में देखा, वह नहीं वस्लो उसके विरुद्ध अपने तह छिपाना चाहिए। यार में देखा।" जिस समय जहाज अपनी खाड़ी से रवाना होता है तो कैसा एक युवा व्यसनी अथवा लवंग-प्यारी तुम तो लड़के के सुहावने वेष में बहुव्ययी के भांति झड़ियाँ फहराए हुए और दुष्ट वायु आप ही छिपी हो। परंतु अब शीघ्रता करो क्योंकि रात, जो प्रेमियों की अवलंब है, बीतती जाती है और हम के गले लगा हुआ चला जाता है ! पर जब वह लौटता है लोगों को अभी वसंत के भोज में कुछ देर ठहरना है। तो उसी वहुव्ययी की भांति उसकी कैसी दुरवस्था हो जाती है अर्थात तूफान से किनारे टूटे हुए, पाल फटे हुए जसोदा-मैं द्वार बंद करके और कुछ और निरातक और व्याकुल ! और यहाँ सब बुराइय उसी रुपये ले कर अभी आती हूँ। कठोर वायु के द्वारा होती है। (ऊपर से जाती है) गिरीश-मैं शपथ खा कर कह सकता हूँ कि (लंवग आता है) गिरीश वह देखो लवंग आ पहुँचे । उस यह जैन नहीं वरंच आर्या जान पड़ती है। विषय में हम लोग फिर बातचीत करेंगे। लवग- मेरा बुरा हो यदि मैं इसे जी से न प्यार लवग-मेरे प्यारे त्रिो, मुझे विलंब के लिये करता हूँ । यदि मेरी समझ ठीक है तो यह बुद्धिमती है, क्षमा करना। इसमें अपराध मेरा न था वरंच और यदि मेरी आँखें अंधी नहीं हो गई हैं तो सुंदर भी आवश्यक कामों का । जब स्त्री चुराने की तुम्हारी बारी आवेगी तब मैं भी इतनी देर तक तुम्हारी राह देखूगा । अत्यंत ही है । सचाई इस की जैसी कुछ है विदित है, अच्छा इधर आओ, यही मेरा ससुरा जैनी रहता है । ऐ अत : ऐसी बुद्धिमती, सुंदरी और सच्ची युवती का मैं, कोई भीतर है। सदा मन से आज्ञाकारी रहूँगा । (जसोदा लड़के का कपड़ा पहिने हुए ऊपर से झाँकती (जसोदा नीचे आती है) क्या तुम आ गई ? चलो महाशयो, चलो, हमारे स्वाँग भारतेन्दु समग्र ५०२