पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५६६

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चढ़ा है। मिलेगा? 'महाराज विक्रम ही तो हैं ! भला अधम तु अब मेरे हाथ मंडलेश्वर–जिसमें तुझे हमारे और अपने स्वभाव में अंतर जान पड़े मैंने वेमागे तेरा जो बचा पुरश्री-ओ जैनी तू अब किस सोच विचार में दिया। अब रही तेरी सम्पत्ति सो उसमें से आधी तो पड़ा है। अपना दंड ग्रहण कर ले। अनंत की हो चुकी और आधी राज्य की, जिसके पलटे शैलाक्ष अच्छा मुझे मेरा मूल दे दो मैं अपने में यदि तू दीनता प्रकाश करेगा तो दंड ले लिया घर जाऊं। जायगा । बसंत-ले, यह रूपया उपस्थित है। पुरश्री- अर्थात् जितना राज्यांश है उसके बदले पुरश्री -यह भरी सभा में रुपये का लेना | में, अनंत के भाग से कुछ प्रयोजन नहीं । अस्वीकार कर चुका है । अब इसे न्याय और दंड के शैलाक्ष- नहीं मेरा प्राण और सब कुछ ले अतिरिक्त कुछ न मिलेगा। लीजिए, वह भी न क्षमा कीजिए । जब कि आप उस गिरीश-विक्रम महाराज! सचमुच यह आधार को जिस पर मेरा घर खड़ा है लिए लेते हैं तो विक्रम ही तो हैं । ऐ जैनी, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ मेरे घरको पहले ले चुके, इस भाँति जबकि आपने मेरे कि तू ने मुझे अच्छा शब्द बतला दिया । जीवन का आधार छीन लिया तो मानो मेरा प्राण पहले शैलाक्ष- क्या मुझे मेरी मूल धन भी न ले चुके । पुरश्री- अनंत तुम उसके साथ कितनी दया पुरधी- तुझे दंड के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकते हो। मिलने का । इससे ऐनी जैनी अपने जी पर खेल कर गिरीश-भगवान के वास्ते सिवाय एक रस्सी उसे वसूल कर ले। के जिससे वह फाँसी लगाकर मर सके और कुछ व्यर्थ शैलाक्ष- -अच्छा मैंने उसे राक्षस को सौंपा अब न देना। मैं यहाँ कदापि न ठहरूँगा । अनंत-मैं मंडलेश्वर और राजसभा से बिनती करता हूँ कि उसके अर्धभाग के बदले का दंड मैं पुरश्री-ठहर ओ जैनी, तुझपर कानून की एक और धारा है । वंशनगर के कानून में यह लिखा है कि इस शर्त पर देने को प्रस्तुत हूँ कि वह भाग शैलाक्ष मेरे यदि किसी परदेसी के विषय में यह सिद्ध हो कि उसने पास धरोहर की भाँति जमा रहने दे, जिसमें उसके प्रकट या गुप्त रीति पर वंशनगर के किसी रहने वाले के मरने पर जो मनुष्य हाल में उसकी लड़की को ले भागा वध करने की चेष्टा की तो वह प्रतिवादी जिसके विषय | है उसको सौंप + । परंतु इसके साथ दो प्रण है अर्थात में ऐसा यत्न किया गया हो अपने प्रतिवादी की आधी पहले तो वह इस वर्ताव के लिये आर्य हो जाय और सम्पत्ति पर अधिकार दिला पाने का दायी है और शेष | दूसरे इस समय सभा में एक दानपत्र इस आशय का लिख दे कि उसके मरने पर उसकी सारी सम्पत्ति आधा राजकोष में ग्रहण किया जायगा । अपराधी के उसके जमाता लवंग और उसकी लड़की को मिले । मुक्त करने का केवल मंडलेश्वर को अधिकार है, मंडलेश्वर-उसे यह करना पड़ेगा, नहीं तो उसमें कोई दूसरा हस्तक्षेप नहीं कर सकता । तो जान, ओ जैनी कि इस समय तेरी अवस्था अत्यंत दुर्बल है | मैंने जो क्षमा की आज्ञा अभी दी है उसे काट देता है। क्योंकि मुकदमा के विवरण से यह स्पष्ट है कि तू ने पुरश्री- क्यों जैनी तू इस पर प्रसन्न है, कह जान बूझ कर प्रतिवादी के प्राण लेने की चेष्टा की और क्या कहता है? इस भांति उस आपत्ति में, जिसका मैं ऊपर वर्णन कर शैलाक्ष-मैं प्रसन्न हूँ। चुका हूँ, फंसा है। इसलिये तुझको उचित है कि पुरश्री-लेखक अभी एक दानपत्र लिखो । मंडलेश्वर के चरणों पर सिर रखकर दया की प्रार्थना शैलाक्ष- भगवान के निहोरे मुझे यहाँ से जाने की आज्ञा दीजिए, मेरी बुरी दशा है । पांडुलिपि मेरे कर । गिरीश- सुन जैनी, मैं तुझे एक उपाय मकान पर भेज दीजिए मैं हस्ताक्षर कर दूंगा। बताऊँ ; मंडलेश्वर से निवेदन कर कि तुझे आप मंडलेश्वर-

-अच्छा जा, परन्तु हस्ताक्षर कर

फाँसी लगाकर मर जाने की आज्ञा दें । परंतु तेरा धन देना। संपत्ति तो छीन ली जायगी अब तेरे पास इतना बचेगा गिरीश-आर्य होने से तेरे दो धर्म बाप होंगे। कहाँ कि रस्सी मोल ले सके, इस लिये तुझको राजा ही | कदाचित मैं न्याय कर्ता होता तो दस और होते जिसमें के व्यय से फाँसी देनी पड़ेगी। तुझे आर्य करने के लिए मंदिर भेजने के बदले में भारतेन्दु समग्र ५२२